रेत पर पैरों के निशां
मेरे दिल पर छोड़ कुछ यूं,
कभी जो भटके इन लहरों से
तो तेरे पैरों के नक्श मिले!-
बेबस मन और बेमतलब सी सांसें आज भी आवारा है,
इनमें वो खालीपन पनपता है जिसकी रिक्तता को कभी भरा नहीं जा सकता।-
तुम्हारा शांत चेहरा
और वो अजनबीपन से गहरा रिश्ता
जैसे मिल गए हो अचानक
किसी एक मोड़ पर
इक अंधेरे कमरे में
मुझे ये सब स्पष्ट दिखाई देता है
मैं भूल जाता हूं कुछ वक़्त के लिए दुनिया की हर रिवायतें
कमरे का हर कोना ऐसा लगता है
जैसे यादों का कोई प्रतिबिंब बना रहा हो।-
एक उम्र हो चली है तेरी बाहों में सिमटे हुए।
क्या तुम्हारी बाहें वैसे ही कोमल और सुवासित है?
क्या अब भी तुम्हारे उरोज के छुअन से उपजे अहसास का संचरण मेरी छाती के कठोर आवरण में कैद होने को तरसता है?
क्या वे किसी नदी की तरह गीली हैं और उनमें गुदगुदी मछलियों के स्पर्श सी तैरती है?-
इश्क़ गुनाह नही जो ख़ामोशी में गुजारा जाए
कुछ शरारतें हो , कुछ एक दूजे को छुआ जाए-
आंखों में कोई ख्वाहिश
जगी तो नहीं
पर एहसासों के
मेले लगे है,
तुम्हारे नर्म बाहों का
सहारा लेने के लिए
मैं करवट बदल रहा हूं।-
आओ लबों से लबों पर कोई
कारोबार करे,
बन्द आंखों से खेल ये
शुरुवात करे।-