एक उम्र हो चली है तेरी बाहों में सिमटे हुए।
क्या तुम्हारी बाहें वैसे ही कोमल और सुवासित है?
क्या अब भी तुम्हारे उरोज के छुअन से उपजे अहसास का संचरण मेरी छाती के कठोर आवरण में कैद होने को तरसता है?
क्या वे किसी नदी की तरह गीली हैं और उनमें गुदगुदी मछलियों के स्पर्श सी तैरती है?
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