स्याह बनके जैसे जैसे पन्नों पे खुदको गिराता जाऊंगा।
वैसे वैसे मेरे जेहन से मैं तुझको मिटाता जाऊंगा।
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थोड़ा सा है इश्क,या फिर बेपनाह है
मैं हूं,बरसात है, तू पर कहां है।
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दोस्ती हुई है या इश्क पता नही,
पर जो तुझसे हुआ,वो किसी से हुआ नही
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दिल ही नही भरोसा भी तोड़ देता है,
जब कोई किसी और के लिए किसी को छोड़ देता है।-
पहले दिल लगाया सपने सजाए जो टूट के बिखर गए।
फिर कलम उठाई और और सारा गुस्सा पन्नो पर उतर गए।-
जब हमारी नज़रों ने एक दूजे को छुआ था।
मेरी तरह तो तुझे भी इश्क हुआ था।
देर रात तक बातो का सिलसिला होता था,
सुबह चंद घंटों की नींद में तेरे सपने संजोता था।
जब किसी और के लिए तुम जुदा हो गए,
खुशी से थे पहले फिर सजा हो गए,
अब समझ आ रहा नींद खोना ही क्यों
तुम्हे अब याद तक नहीं तो मुझे रोना ही क्यों
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मन का सुकून गया है,आंखे कहां सोई है आजकल,
बरसाते उतनी नही हुई है,आंखे जितनी रोई है आजकल-
न कभी तेरा नाम लिखा था,ना कभी तेरा नाम लिखेंगे,
जब कभी आएगा तेरा नाम गजलो में,सर झुका करके सजदा करेंगे।-
जिंदगी के कश्मकश से थे हारे हुए
आंसुओ और गम के थे सहारे हुए,
जब तुम आए तो जैसे खुशी छा गई,
जब हम तुम्हारे हुए तुम हमारे हुए-
तेरा दिल लगाना और छोड़ जाना,
नाटक तेरा काफी अच्छा था।
तुम कर न सके मोहब्बत तो क्या,
पर मैने जो किया वो इश्क सच्चा था-