एक तन जलाने के खातिर
पूरा घर संसार जलाया है,
लाशों पर बाजार लगाया
मौत पर व्यापार चलाया है।
उड़ने वाले ख्वाबों को वो
कागज पर भी न लिख पाए हैं,
कैसे भूले बचपन छोड़ अधूरा
नन्हे पैर श्मशान तक आए हैं।
दिल आज हर एक चीख रहा
सबने कुछ न कुछ तो खोया है
जाने वो अच्छे दिन वाला
किस स्वप्न किले में सोया है।
बहते आंसू कुछ थम जाने दो
फिर दर्द जुबां से बोलेंगे
फिर आना तुम मरहम लेकर
हम तौलेंगे, न दरवाजा खोलेंगे।
ये वक़्त चला भी जाएगा
ये दर्द सीने में ले लेंगे
कुछ न बोलेंगे हालातों पर
बस जी भर करके रो लेंगे।
✍🏻 मीनाक्षी उनियाल-
तन्हाई में तन्हाई का बयां है, तन्हा की ज़िन्दगी..
ढूंढ रही अंजन नयनों से,मन में उन्मद अनुराग लिए,
वो सुजान करता है अभिनय,जा बैठा बैराग लिए।
पलकों के पीछे से कान्हा,देखे राधा को छिप-छिप के,
वह आहत, उन्मद,उर्मिल,करती है क्रंदन रुक-रुक के।
स्वाति घटा से पूछ रही,पूछ रही चंचल चपला से
चंदा संग तुम जुड़ी हो कैसे,प्रश्न करे है चन्द्र-कला से।
स्याम हुई, वो स्याम बनी,कालिंदी संग अश्रु बहे
कैसे ढूंढे वो कान्हा को,कैसे विरह अग्नि को सहे।
राधा क्रोधित हो बैठी अब,प्रेम में कान्हा बहुत सताये,
मैं न मिल पाई गर श्रीधर,तो दूजी राधा कहाँ से लाये।
संग राधा के अश्रु बहाये,न खुद को कान्हा रोक सके
राधा संग तो प्राण जुड़े हैं,निश्छल प्रेम में नैन झुके।
नैन झुकाए श्री मुस्काये,चलचितवन से करे प्रयत्न,
कज्जल अश्रु को समेट रहे,ये आज बने हैं जीवन रत्न।
खोज रहे विनती है करें,कमल-कंठ करते हैं शोर,
कमल-मुख अब जा छिपा है,शुरू हुआ अभिनय एक और....
मीनाक्षी उनियाल-
मैंने कब ये कहा कि तुमसे प्यार ना रहा
शायद तुमको ही मुझ पे ऐतबार ना रहा
हर मरासिम में तुमको ही खोजता रहा
हर सहर शब तुमको ही सोचता रहा
मेरी सांसों और यादों में तुम ही हो बसे
अपनी आंखों से बस ये ही बोलता रहा
इन आंखों पे तुमको इख्तीयार ना रहा
मैंने कब ये कहा कि तुमसे प्यार ना रहा
मैं पास ही रहा तुम ही दूर हो गई
किस सोच में तुम यूं चूर चूर हो गई
मैंने बरसो प्यार से तराशा तुम्हे
तुमको इल्म ना हुआ तुम नूर हो गई
तुम्हारे ही दिल में अब ये खुमार ना रहा
मैंने कब ये कहा कि तुमसे प्यार ना रहा-
जब भोर हुई
कुछ शोर हुआ
गमगीन नज़ारा
हर ओर हुआ
राजा दिल का
अब चोर हुआ
दहशत्, रुख़सत
समा, घनघोर हुआ
.........
वो आया नही
या बुलाया नही
किसी ने उसे
कुछ बताया नही
सिखाया तो था
पर दिखाया नही
रवैया वक़्त का
कुछ जताया नही
चुप्पी लिये वो
यों कमजोर हुआ
जब भोर हुई
कुछ शोर हुआ
गमगीन नज़ारा
हर ओर हुआ-
आजकल सबकी जीभ में हूँ
हूँ बहुत तकलीफ में हूँ
दर्द उठता है रूक रूक के
लगता है अब सलीब में हूँ..-
यों चला सफ़र ज़िन्दगी का
हर साख भी गिरती रही
और मौत भी हंसती रही
जिस्म के पहलूओ में
फ़िर सान्स भी रूकती रही
और मौत भी हंसती रही-
तेरे दामन मे समाने की ख्वाहिश थी
पर तेरे इताब का डर था
तेरे चेहरे को देखना चाहता था
पर रुख पर नकाब का डर था
तुम मिल जाओगे मुझ दिवाने को
ये सोच के मैं खुश था
तुम छोड़ चले हो मुझे तन्हा
मुझे इस बुरे ख्वाब का डर था..-
दिल का दर्द दिख जाता है तेरी मुस्कराहट के पीछे
खुद से खफ़ा हो जाता हूँ, आकर तेरी शिकायत के पीछे
रुशवाईयो पर तेरी चिढ़कर भी हंसे जाते है हम
करता है झुक जाने का मन तेरी इस आदत के पीछे..-
पीड़ा पीड़ा रूक रूक उठती लगा जबसे प्रेम रोग
सारी दुनिया प्रेम मे त्यागी, ले लिया प्रेम मे जोग
लाईलाज़ इस रोग का क्या ईलाज करे कोई
इसमे क्या मांगे मन्नत, क्या कोई चढाये भोग
सब कुछ करने पर भी ये प्रेम रोग ना जाये..
दिन बीत बीत माह आये जाये
माह बीत बीत बरस ले आये
पर आये ना प्रियतम अब तक क्यों
अठखेलियां करती ऋतुएं हवायें..-
स्मरण कर प्रिये तुम्हें होता है प्रलाप यहाँ
रूदन हद से बढ जाता, आ जाओ आप यहाँ
साँझ, सवेरे, रात्, दोपहर, एक पल सदिया बन जाती
अश्रूओ मे खुद को जला, करता हूं मैं जाप यहाँ
ये प्रलाप मुझको बार बार, हर बार जलाये..
दिन बीत बीत माह आये जाये
माह बीत बीत बरस ले आये
पर आये ना प्रियतम अब तक क्यों
अठखेलियां करती ऋतुएं हवायें..-