वो नसीहतों का ,रिश्तों में कश्मकश का दौर मनन, आज पलट के देखता हूं तो दर्द से काश निकल जाता है । मां बाप सर पे थे तो जिंदगी थी अब तो सिर्फ लबों से काश निकल जाता है , मां की गोद में सर रख कर सो जाता था , पापा को डर से गले न लगा पाने पर अब सिर्फ काश निकल जाता है ।। ऐसा नहीं है के ज़िंदगी में सिर्फ रुसवाईयां ही हैं , अपने अंदर चुप बैठे उस बच्चे का वो अधूरा सा एहसास निकल आता है ।। अब जब भी मुड़ के देखता हूं जिंदगी ,लबों से सिर्फ काश निकल जाता है ।।
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