थक गया मनन मैं दर्द का बयान देते देते , आंखें भर आई है इम्तेहान देते देते , अब तो वो गले लगा ले या खुदा ,हम खुद न बन जाएं दास्तां इम्तेहान देते देते !
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मैं तेरे लिए वाजिब हूं या नहीं मनन इसकी खबर नहीं मुझको , पर तू मेरी जिंदगी की मौज का किनारा ये यकीन था ,है और ता उम्र रहेगा मुझको!
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कह डालो न हर बात मनन लफ्जों का सहारा लेकर , यूं तन्हा बैठो न किनारों का सहारा लेकर , ये सुबकते लब क्यों दर्द से सराबोर हैं , बह ही जाने दो कमबख्तों को आंखों का सहारा लेकर , यूं बे उम्मीद दुनिया से उम्मीद किस बात की , खंजर हमने भी उन्हीं से खाए हैं ,जो लगे थे गले मनन अपने पन का बहाना ले कर , मूड के देखोगे तो हर पाप नज़र आएगा मनन, ज़िंदगी में बढ़ते रहो उम्मीदों का सहारा ले कर ।।
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अगर पति ,प्रेमी या पिता के रूप में आदमी चुप हो जाए और कुछ न कहे तो इसका मतलब वो अंदर से टूट गया है और इससे ज्यादा दर्द तुम उसे नहीं पहुंचा सकते और न वो इससे ज्यादा दर्द सह सकता है ना ही इनसे ज्यादा प्यार और परवाह कोई कर सकता है ,इसी लिए अपने शब्दों के तीखे बाण इनपर इस्तेमाल न किया करें ।।
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लोग अक्सर अपने आप को सही साबित करने के चक्कर में मनन जिंदगी के कीमती रिश्ते हार जाते हैं !!
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दिसंबर भी बाप की तरह ही पूरे साल का बोझ लिए चलता है और विडंबना ये है की मां की तरह एक जनवरी आते ही उसके किए हर काम की कद्र ख़त्म हो जाती है और वो फिर बिना थके वही बोझ संभालने में बिना शिकायत लग जाता है ।।
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तू वक्त का मसरूफियत का बहाना दे कर मेरा इंतेज़ार बढ़ा देते हो मनन, मैं खुद से तेरी मुहब्बत के इंतेज़ार में अपनी उम्र बढ़ाने की दुआ करता हूं , कहता तो रोज़ हूं तुम्हें के तेरा नाम लेकर जीता हूं , सच में तो इंतेज़ार में रोज़ कतरा कतरा मरता हूं , अरमान roz होते हैं तुझे गले लगा के होठों से लगा लूं , पर तेरी नाराज़गी से डरता हूं ।।
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