Life is static, thus doesn’t change and goes on in a straight path. If anything that goes a change, it’s its prefix only like good, fine, wonderful, joyful, lovely, challenging, sorrowful, lonely, bad, boring, miserable etc. As prefixes are dynamic, they keep changing forming peaks and troughs depending upon one’s circumstances and experiences coming out of one’s mindset, perceptions, beliefs, expectations.
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I dedicate all my writings to the lovi... read more
Why 70 hours or 90 hours Sir?
I am ready to work for 105 hours
all the seven days of the week
I’m fully motivated by your clarion call
thus ready to forgo the pleasure of
staring at my wife!
But, what if
My wife doesn’t agree to the idea?
What if she doesn’t agree to sacrifice
her desire of staring at me, to flirt and
exchanging amorous looks with me
everyday and whole of the Sundays?
I can sacrifice my rights and desires
But she too has rights and expectations
And I believe I have no right to deny
and deprive her of her rights!-
ਕਲਗੀਧਰ
ਦਸਮੇਸ਼ ਪਿਤਾ ਸਰਬੰਸ ਦਾਨੀ
ਧੰਨ ਧੰਨ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ
ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਪੁਰਬ ਦੀਆਂ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਲੱਖ ਲੱਖ ਵਧਾਈਆਂ॥-
एक नया दिन एक नया सप्ताह
एक नया मोड़ एक नया अध्याय
नई चुनौतियाँ और नई अपेक्षाएँ
नये संघर्ष नये प्रयत्न नये प्रयोग
निर्भीकतापूर्वक साहस प्रदर्शन
असफलता का सताता हुआ भय
हर संभव उत्तीर्ण होने की चाहत
गिरकर फिर से उठना संभलना
अपने पाँवों पर फिर से खड़े होना
फिर नये जोश से चलने का प्रयत्न
फिर से मंज़िलें सर करने का यत्न
बस हर दिन यही तो सब चलता है
जब तलक जीवन है जीना पड़ता है
आशा निराशा के झूले पर चढ़ता है
इंसान के बस में तो बस यही कुछ है
आये दिन संघर्ष प्रयास यत्न प्रयत्न!-
HAPPY BIRTHDAY!
Happy Birthday Ms.Fifty Eight
Lady with elegance and grace!
O! Beautiful soul so endearing
a human being really so great!
Stay blessed O! Ms.Fifty Eight
always meet a wonderful fate!
Under the beautiful stary sky
showering on you all accolades
hog the limelight everywhere
you deserve now and always
with all flair so fair and square!
Enjoy your Wonderful Birthday
with flowers cake and chocolates
blowing candles all Fifty Eight!
Without inhibition open doors
as good luck with basket full of
Joy and Happiness standing
knocking at your heart’s gates!
Spread your arms to embrace
a life with colours of beautiful
strokes of all hues and shades!-
तिश्नगी!
रंज इस कदर बेहिसाब हुआ क्यों है
मुझसे इस क़दर बेज़ार हुआ क्यों है!
तुम्हें देखने की कोई सूरत बन पाये
यह सोचना भी दुशवार हुआ क्यों है!
दस्तूर तो यही था हमारी बात होती
तीरे-ए-जफ़ा मिज़ाज हुआ क्यों है!
तुम्हें पढ़ने की हरदम ही तमन्ना रही
दिल इस क़दर बेक़रार हुआ क्यों है!
मिली दुत्कारों का मलाल नहीं कोई
मगर क़द्रदान नागवार हुआ क्यों है!
आस का पंछी आलम समझे कहाँ
दिल तिश्नगी में बर्बाद हुआ क्यों है!-
तुनक मिज़ाज!
लगा ख़ामियाँ नहीं वो तो मेरे गुनाह ही गिनवा रही थीं
शिकायतों की फ़हरिस्त जो ख़त्म ही न हो पा रही थी
न उनकी कोई भी शिकायत हमें हैरान कर पा रही थी
न हमारी वज़ाहत भी उनपर कोई असर कर पा रही थी
न कोई दुआ सलाम न ख़ैर खबर पूछने का तकल्लुफ़
वो तुनक मिज़ाज बस इलज़ाम ही लगाये जा रहीं थीं
चाहे उनकी शिकायतों के आगे मात खाती जा रही थीं
मगर फ़हरिस्त में हमारी मजबूरियाँ जुड़ती जा रही थीं
कोई इल्तिजा सुनना उनकी आदत में शुमार ही न था
चिल्ला चिल्लाकर बस वो अपना बताती जा रहीं थीं
दिल तो किया चीख चिल्लाकर अपने भी दर्द गिनाऊँ
मगर बेबसी से भरी आँखें बस रोकती ही जा रही थीं
उनकी तो बस ये आदत सी ही अब बनती जा रही थी
दर्द में मेरी रूह ख़ुद का सुकून खोता देखे जा रही थी
ग़ैर नहीं कोई उन्हें यक़ीन दिलाया ख़ुद को समझाया
दबाकर कराहती यादें जो कोहराम मचाये जा रही थीं!-
इशारा!
इन हवाओं ने क्या बवंडर उठा रक्खा है
बस तबाही का ही आलम बना रक्खा है!
समंदर में उठती लहरों का क्या उफान है
बस साहिलों की हदों को मिटा रक्खा है!
अंदर भी तो रोज़ उठते कई नये तूफ़ान हैं
बस ज़िंदगी ने मक़सद यही बना रक्खा है!
सूरज ढल गया है रात का स्याह अंधेरा है
बस कालिख ने यहाँ क़ब्ज़ा जमा रक्खा है!
शमा जल उठी अब परवानों का इंतज़ार है
उनके मँडराके जलने का वक्त आ रक्खा है!
यहाँ ख़ालीपन की एक अजीब सी घुटन है
बस इशारा कहीं भटकने का बता रक्खा है!-
दुआएँ!
सुबह की बिखरी किरणें
आपके चमकते चेहरे पर
ख़ुशियाँ कई हज़ार लाएँ!
सूरज की लालिमा आज
अन्दर भरकर नये दिन के
ख़ूबसूरत से पैग़ाम लाए!
आप हँसते मुस्कुराते रहें
हरदम यही दुआ करते हैं
ख़ुशियों की बहार आए!
हसीन चेहरे की पेशानी पे
कोई शिकन न उभरे कभी
इसपर तरंगें बेशुमार आयें!
शोहरत की बुलंदियाँ छुएँ
आपके लिए दुआएँ हमारी
उसके दर क़बूल हो जाएँ!-
संतुलन!
हर जगह दौड़ा भागा है दिन रात अभागा
अशांत मन में भर गया सिर्फ़ शोर-शराबा
तन सुख पाने निकला तो मन सुख त्यागा
मन सुख गँवाया हाथ लगा बस पछतावा!
सुनी थी तन सुख से मन के रिश्ते की बात
सुना मन से ही सही होते हैं तन के हालात
जो तन से अक्षम हैं जियें मुस्कान के साथ
मन से अक्षम बने तो कहें दिन को भी रात!
तन से अक्षम चाहे जियें संघर्ष भरा जीवन
फिर भी रहे दृढ़ निश्चय से भरा उनका मन
हर क्षण वो आशाओं से भरें अपना जीवन
चुनौतियों से मुँह न फेरेंगे रहे उनका प्रण!
मन के जीते ही जीत है मन से कभी न हार
हारे मन से तो पहुँचे सीधे ही पराजय द्वार
मन क्यों उपेक्षित हो काम में डूबे दिन रात
संतुलित जीवन ज़रूरी है बात रखना याद!-