हम अपनी सल्तनत के शहंशाह है
अकसर लोग आईना समझकर
अपनी औकात देखते है— % &-
अकेला
अकेले से ही ऊपजा था
अकेले ही समा लुंगा जहाँ..
हूँ अकेला तो मुझसे ही है बारीश
एक बुंद ना हो तो कैसा समंदर..
हूँ मैं तो मुझसे ही यह समाँ
ना रहा मै तो क्या आसमाँ..
मेरी एक साँस से ही है जिंदा
हूँ मै तो है यह सारा जहाँ..
मैं नही
मुझसे है जमाना अकेला
खुदमें ही समेट लेता हूँ
फिरसे बसाता हूँ अकेला..-
रहिमन धागा प्रेमका
मत तोड़ो चटकाय टूटे से फिर ना मिले
मिले गांठ पड़ जाए।
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ऊसने क्या लाज रखी
मेरी गुमराही की
के में भटक कर भटकू
तो भी ऊसी तक पहुँचू..
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चंद खामोश खयाल
और तेरी बातें,
खुद से गुफ्तगू में
गुज़र जाती हैं रातें..-
तुम्हे आदत है भुल जाने की
हमे तो आदत है तुम्हारी
तुम्हे आदत है रुठ जाने की
हमे तो आदत है तुम्हारी
तुम्हे आदत है इतराने की
हमे तो आदत है तुम्हारी
तुम्हे आदत है छेडने की
हमे तो आदत है तुम्हारी
तुम्हे आदत है हक जताने की
हमे तो आदत है तुम्हारी
तुम्हे आदत है हमारी
हमे तो आदत है तुम्हारी-
वो चाहे कितना भी रूठें
आँखो के रास्ते
चोरी छिपे
खयालोंमें
आ ही जाता है..
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