Pradeep Sahai Bedar   (© प्रदीप सहाय बेदार)
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Joined 12 June 2021


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5 MINUTES AGO

यही इक बात दुनिया से उसे बेहतर बनाती है,
हमें उपर उठाना हो तो खुद घुटनों पे आती है।

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14 MINUTES AGO

दानिशमंदों बता सको तो बतलाना
सुना है कोई लफ्ज़ जो माँ से छोटा हो,
ग़र बतला ना पाना तो फिर यूँ करना,
बतलाना वो लफ्ज़ बड़ा जो माँ से हो।

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YESTERDAY AT 22:24

मेरे दिल के करीब आ गई अब वो फिर,
है यही तो डगर जानिब-ए-जाँन-ए-जाँ।

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YESTERDAY AT 22:20

बज़्म में हम इश्क़ से इनकार करके आ गए,
बे-सबब हम खुद को यूँ बीमार करके आ गए।

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YESTERDAY AT 10:45


खिला रहे ये फूल
हज़ारों साल।

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YESTERDAY AT 5:14

वक़्त की तहों में ही
ज़िन्दगी के लम्हे हैं।

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9 MAY AT 22:38

बड़ी कीमती चीज़ है ये मवद्दत,
जवानी लुटा दी बड़ा तीर मारा।

मवद्दत में बेदार हर सू अमन हो,
अगर जंग है तो यक़ीनन मैं हारा।

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9 MAY AT 22:31

अयाँ हो ग़ज़ल में मवद्दत का पैकर,
हर इक लफ़्ज़ को ऐसा ए'जाज़ देना।

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9 MAY AT 9:19

खाली कप में तुम क्या जानो अब भी कितना बाकी है,
मुझ को दे दे बस वो प्याली तू ही मेरा साक़ी है।
बस इक लम्हा बिता के मैने पूरा जीवन जी डाला,
उस लम्हे का नाम नहीं कुछ जो दौलत दुनिया की है।

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9 MAY AT 9:03

तुम्हारी बज़्म में वो तुम, तुम्हारी चाय की प्याली,
मेरे होठों पे ज़िंदा है, नशे में चूर हूँ अब तक।

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