Pradeep Sahai Bedar   (© प्रदीप सहाय बेदार)
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Joined 12 June 2021


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38 MINUTES AGO

तेरे गेसू में गजरा दमकता रहे,
तुम महकती रहो मैं बहकता रहूँ।

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कैद हो कर तो कुछ नहीं हासिल,
जब दूँ दस्तक निकल भी आया कर।

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2122 2122 2122 212

आप जो भी कीजिये अपनी ज़रूरत के लिए,

इश्क़ ने बदला हमारा ज़ाविया इस तौर अब,
ख़्वाहिशें बाकी नहीं हैं अब शिकायत के लिए।
सब लुटा है पर लबों पर है तबस्सुम आज भी,
हौसला अफ़ज़ाइयाँ हों इस जसारत के लिए।
शेख़ जी ने ये कहा था आख़िरत में है सुकूँ
इक नज़र काफ़ी है उनकी तो क़यामत के लिए।
भर गया ज़ख़्मों से अब बेदार मेरा ये बदन,
शुक्रिया कहता हूँ तुम से इस इनायत के लिए।

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18 HOURS AGO

यूँ ही बिखरे जो काग़ज़ पर
तो बे-मक़सद भटकती है,
क़लम का साथ मिल जाए
तो स्याही भी चहकती है।

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20 HOURS AGO

तुमने वादा किया था मिलन का जहाँ,
उम्र बीती वहीं राह तकते हुए
याद आती रही ख़्वाब देखा किए,
और अरमाँ हज़ारों मचलने लगे।

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22 HOURS AGO

अगरचे खुशनुमा है ज़िन्दगी अब,
सफ़र तकलीफ का लम्बा रहा है।

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1 SEP AT 13:04

तारीफ हज़्म हो न सकी मुझ को बज़्म की,
तोहमत हुई अज़ीज़ दिल-ए-ज़ार के सबब।

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1 SEP AT 12:48

कैसे मानूँ कि गुल अब भी है ख़ूब-रू,
तितलियों को भी ग़फ़लत हुई देखिए।

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31 AUG AT 16:49

बड़ी कश-म-कश में मेरी ज़िन्दगी है,
मगर इस का हासिल तुम्हारी खुशी है।

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31 AUG AT 13:22

फिर तो मैं सब कुछ छोड़ कर बस रू-ब-रू बैठा रहा,
सारा ख़सारा इक तरफ़ दिलकश नज़ारा इक तरफ़।

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