कल तक जैसे मुझे किसी की तलाश थी,
ज़िन्दगी मेरी जैसे कोई बेज़ान लाश थी।।
आज अचानक मेरी हसरत ऐ मुहब्बत मुकम्मल हो गई,
ज़िन्दगी की मारकीन मेरी जैसे मलमल हो गई।।
पूजू तुझे या मेरे उस ख़ुदा को अब यह कैसी मुश्किल हो गई।
तेरी दोस्ती मेरे लिए रब, ख़ुदा मेरा बिस्मिल हो गई।।
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जिंदगी के सफ़र में दोस्त दो - चार हमने भी बनाए थे।
सारी दुनिया से छिपाकर हमने भी कुछ राजदार बनाए थे।।
इल्म तो हमे भी था फिज़ाओं में घुली नमक हरामि का,
फ़िर भी गैरों के सहारे हमने भी सपने दो - चार हमने भी सजाए थे।।-
बेशक मेरे शब्द मुस्कुरा रहे हैं, पर भीगी हुई मेरी सारी किताब है।
मौसम जरा खराब है आजकल नसीब का, हवाएं नौका के मेरी सारी ख़िलाफ़ है।।
कलम मेरी, अल्फ़ाज़ मेरे, जज़्बात भी मेरे है।
पर कहानी में मेरी किस्से तेरे बेहिसाब है।।
बेशक मेरे शब्द मुस्कुरा रहे हैं, पर भीगी हुई मेरी सारी किताब है।
आंसुओं से भरा है मैंने ये छलकता हुआ प्याला मेरे दर्द का है।
छिपे है कई वादे कस्मे इस प्याले में तेरे, लगती दुनिया को जो ये शराब है।।
बेशक मेरे शब्द मुस्कुरा रहे हैं, पर भीगी हुई मेरी सारी किताब है।।
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चड़ा प्रत्यंचा भृकुटी ललाट पर,
जब कूदा कर्ण रण में।
हाहाकार मची चहुं ओर,
मानो काल टूट पड़ा हो पांडव दल पर।।
मौन सदा जग रहा, जब जब वो सूत पुत्र कहलाए।
देख कर्ण के रूप में काल अर्जुन का केशव भी घबराए।।-
कोरोना भी 14 दिन में ठीक हो गया।
ना जाने तू कोन सा मर्ज दे गया, सालों से ज़ख्म हरे है।।-
गई तू ऐसे वादे भुलाकर, अब ऐतबार किसका करू।
जिंदगी के इस मोड़ पर अगर तू साथ नहीं है, तो तेरा दरकार क्या करूं।-
जिंदगी में रंग तो बहुत है, फिर भी बेरंग सी है।
भीड़ तो बहुत है यहां, पर कोई संग नहीं है।।-
दोस्तो मेरी किताब जो कि "एक अधूरी सत्य प्रेम कहानी पर आधारित है" के लिए कोई अच्छा से नाम का सुझाव कॉमेंट्स करके दे।
इंतेज़ार रहेगा। 😊😊😊-
याद है तुझे वो रात जब तेरे कांधे के तिल को चूमा था, तू शर्म से कसमसाई थी?
फिर कुछ ही पलों में मेरी बाहों में समाई थी।।
तेरी नज़रों में मैंने खुद को पाया था,
पर कुछ ही पल में पलके झुकाते ही तूने मेरे अक्ष को छुपाया था।
याद है वो रात जब यह हमारी अधूरी कहानी देखकर तू घंटो रोयी थी?
तब तेरी रोती आंखे देखकर मेरी आंख भी उस रात कहां सोई थी।
फिर घंटो तुझे समझाया था, फिर जाकर जब तूने प्यार से मुस्कुराया था,
तब कहीं जाकर इस दिल को उस रात चैन आया था।।-
कल तक संग जीने मरने कि कश्में खाने वाला,
हिज्र की रात में रक़ीब को बाहों में झुला सकता है।।-