मैंने ज़िन्दगी का एक और 'दिसम्बर' खो दिया,
थोड़ी धरा, थोडा अम्बर खो दिया,
होने लगा है मुझे भी अब झूठ पर यकीन,
मैंने सच का सारा समन्दर खो दिया,
आई ना इबादत में मेरे जरा भी कमी,
पर सायद मैंने अपना पैगम्बर खो दिया,
जाना तो चाहता हूँ मैं भी इस ज़िन्दगी को छोड़कर,
मग़र मैंने मौत का नम्बर खो दिया।।
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