Pradeep Gautam   (©PradeepsPoetry)
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Joined 19 July 2021


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Joined 19 July 2021
28 APR AT 7:39

वो सच्चाई ही किस काम की,
जो तोड़ दे उम्मीदें सारी दिल की,

वैसे पता किसको नहीं है यहाँ कि,
वो झूठ पे झूठ बोल रहा है।
🙉🙉🙉

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5 APR AT 17:44

वो जो अपनी खिड़की पर क़िताब लिए बैठे हैं,
नौजवानों के दिलों को, बेताब किये बैठे हैं।

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4 APR AT 21:45

एक ज़ुबान न लोगों से संभाली जाती है,
बात-बात पे माँ-बहन की गाली आती है।

वो जीत ही क्या जो मिले पीठ पे वार करके,
वैसे आजकल बेईमानी बचा ली जाती है।

दाना मिल रहा है सारी मुर्गियाँ खुश हैं लेकिन
दर्द वो जाने जो काटने को निकाली जाती है।

पढ़े-लिखे लगते हो थोड़ा समझदार भी बनो,
आख़िर क्यों धर्म की बात, उछाली जाती है।

दोस्ती हो या दुश्मनी, लेकिन गाँव बचा रहे,
आपसी रंजिश से सिर्फ़, कंगाली आती है।

मोहब्बत से कहकर तो देखो दिल की बात,
इसमें लहजा नहीं धड़कन खंगाली जाती है।

मुखिया पर नहीं, संस्कारों पर गुमां करिए,
लगते हैं लोग, जब खेत में बाली आती है।

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14 MAR AT 19:17

क्या खोया क्या पाया, पता ही नहीं,
है सब कुछ पर कुछ, बचा ही नहीं।

दिल की दहलीज़ पे थी जो दस्तक सुनी,
था लुटेरा वो लेकिन लगा ही नहीं।

हैं बसते जो दिल में, सितम कुछ करें,
बग़ावत की हम में, अदा ही नहीं।

वो गया ले गया, मेरा चैन-ओ-सुकूं,
फ़िरभी लगता वो मुझसे जुदा ही नहीं।

जो कहता था होंगे साथ सातों जनम,
इस जनम में क्यों वो मिला ही नहीं।

एक तस्वीर रख ली है, दीवार पर,
शौक़-ए-दीदार अपना, गया ही नहीं।

जुबां पर हैं छाईं, यूँ ख़ामोशियाँ,
जैसे कहने को कुछ भी बचा ही नहीं।

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3 MAR AT 18:49

दिल की बात जुबां पे लाने नहीं देती,
बेबसी सही-ग़लत समझाने नहीं देती।

दुश्मन तो दुश्मन,दोस्त भी क़ातिल हो,
ग़ुस्से की ऑंधी कुछ बचाने नहीं देती।

मोहब्बत में तमाशा ना हो, ऐसे कैसे,
ये हवस, रूह में घर बनाने नहीं देती।

ख़ूबसूरती के साथ वफ़ा हो ज़रूरी नहीं,
मग़र तलब क़दम पीछे हटाने नहीं देती।

बदलते हालात कहते हैं बदलो ख़ुद को,
लेकिन क़िस्मत है कि मुस्कुराने नहीं देती।

कतरा-कतरा क़ुर्बान जिनपे, ख़फ़ा हैं सब,
ज़िम्मेदारियाँ भी मिलने के बहाने नहीं देती।

अपना भी आलीशान आशियां जरूर होता,
वो तो महँगाई है कि कुछ बचाने नहीं देती।

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26 FEB AT 19:43

इस अधूरी ज़िन्दगी में मुक़म्मल क्या है,
टूटे ख़्वाब, बिखरे रिश्ते, मुक़द्दर क्या है।

कभी लगता था हमें भी इस मोहब्बत में,
मेहबूब के चेहरे से, और मुनव्वर क्या है।

ना वादे ना इरादे, ना अपनी ज़िंदगी ही,
कमबख़्त मौत के अलावा मुक़र्रर क्या है।

सोचा चलो ग़म में मौत से गुफ़्तगू कर लूँ,
तो माँ बोली बेटा नीचे आ छतपर क्या है।

मुर्दे में भी जगा दे हौसला फिरसे जीने का,
माँ की ममता के सामने, मोहब्बत क्या है।

ज़िन्दगी अधूरी सही पर परिवार तो पूरा है,
माँ-बाप के प्यार से आख़िर बढ़कर क्या है।

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24 FEB AT 17:06

यूँ तो चिराग़ उम्मीदों के बुझाए नहीं जाते,
पर सच ये भी है कि कुछ लोग पाए नहीं जाते।

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21 FEB AT 18:14

एक अच्छी बात यही है मुझमें,
कि आशावादी आदमी है मुझमें।

चलता हूँ गिरता हूँ फ़िर उठता हूँ,
बचपन तो सौ फ़ीसदी है मुझमें।

किसी के दर्द को अपना समझना,
शायद जज़्बातों की नदी है मुझमें।

हर किसी पर भरोसा लाज़मी नहीं,
लेक़िन यही तो, कमी है मुझमें।

उस शहर से निकले कई साल हुए,
फ़िरभी वो आसमां-जमीं है मुझमें।

देखकर नही लगेगा कि इश्क़ में हूँ,
दिल छूकर देखो हमनशीं है मुझमें।

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15 DEC 2023 AT 22:03

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10 DEC 2023 AT 16:43

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