मोहब्बत के सफ़र में हम, अनजानी राहों में खो गए हैं,
तेरे बिन सारे मौसम भी जैसे सूने-से हो गए हैं।
तेरी यादों के साए हर पल साथ चलते रहे,
लेकिन तेरे बिना ये लम्हें बस तन्हा-से हो गए हैं।
कैसे भुला दें तुझको, जिसे खुदा से माँगा था,
जाने वाले लौट आ, हम तेरे बिन अधूरे से हो गए हैं।-
लेखन को लेखन ही समझें, कृपया हमसे न जोड़े🙏🙏
शून्य पर सवार एक शू... read more
महंगाई की आंच में जलते हैं ख़्वाब क्यों,
हर साँस पे लगता है, अब हिसाब क्यों।
बेरोज़गारी की धूप है हर एक गली में,
इतनी डिग्रियाँ लिए फिरते हैं जनाब क्यों?
इमरजेंसी तो बस अमीर की चौखट पे है,
ग़रीब का होता नहीं वक़्त पे इलाज क्यों ?
तालीम की बुनियाद हिल रही है कहीं,
अशिक्षा का बढ़ रहा इतना शबाब क्यों?
सियासत के खेल में गुम हैं ज़रूरतें,
हर वादा बन जाता है इक नक़ाब क्यों?
अंधविश्वास फैल रहा है राजकाज जैसे,
ये अंधे-गूँगे-बहरे यहीं पे बेहिसाब क्यों?
हर चैनल पे हैं मिलते मोतीचूर के लड्डू,
वरना सियासत के तलवों में, इतनी मिठास क्यों?
धरती तो वही है, मगर बदली है फ़िजा,
आख़िर भाईचारा है लगता अब अज़ाब क्यों?-
भले ना दुआ, न ख़ुदा की बंदगी कीजिये,
मग़र किसी की न ख़राब, ज़िंदगी कीजिये।-
जब मोहब्बत के किस्से सुनाने होते हैं,
तब ऐब - ए - यार, छुपाने होते हैं।
साथ नहीं तो क्या, होगी कोई मजबूरी,
अरे ग़ुलाम नहीं हमसफ़र बनाने होते हैं।
दिल में दर्द और आँखों में समंदर लिए,
ख़ुद ही ख़ुद के ख़्वाब दफ़नाने होते हैं।
उसका बस चले तो अभी हो जाए मेरा,
मग़र ज़माने के दस्तूर भी निभाने होते हैं।
इक आह से औरों को तबाह करने वाले,
किसी का घर नहीं, अपने दिल जलाने होते हैं।
हर रात क़यामत, हर दिन जैसे जलजला,
मोहब्बत में, बहुत से सितम उठाने होते हैं।-
और फिर थोड़ा सा मुस्कुराते तो अच्छा होता।
कहना चाहता हूँ जो भी हाल-ए-दिल आपसे,
बिन कहे ही सब समझ जाते तो अच्छा होता।-
न चाहते हुए भी छोड़कर जाना होता है,
ये दिल उजाड़ कर, घर बसाना होता है।-
सजाएँ मिलती हैं, बिना गुनाह किए भी,
प्यार हो या कानून, दोनों अंधे जो ठहरे।-
आप तो बेख़बर हैं, आपको ख़बर क्या ?
लोगों की बेबसी भी, करती नहीं असर क्या ?
फूले नहीं समाते जो, दौलत की ताकत पर,
इन चींटियों के अलावा आये उन्हें नज़र क्या ?
न बरगद न पीपल न नीम की छाँव बची है,
अब गाँव में ही बसने, लगे हैं शहर क्या ?
सत्तर काम मिले हैं, शिक्षण के अलावा,
शिक्षक व बच्चे करें, पेंसिल और रबर क्या ?
दे सम्मान, दे बुद्धि, दे तर्क करने की शक्ति,
दुनिया को समझाओ, शिक्षा है धरोहर क्या ?
मूर्खों के राज में है, पाबंदी सच बोलने पर,
मैं भी फैलाऊँ नफरत,और घोलूँ ज़हर क्या ?
हो काम में ईमानदारी,और पेशे से वफादारी,
तो मरने को काशी, या फिर मगहर क्या ?
जो समझते दर्द, तो तड़प उठते तुम भी,
और कहते कि हम भी जाएँ अब गुजर क्या ?-
कितना आसान होता है किसी को गलत ठहराना,
और उसके बाद फिर, खुल कर मुस्कुराना।
मग़र, क्या यही मोहब्बत का दस्तूर है आख़िर,
कि पहले इश्क़ जताना, और फ़िर भूल जाना।-