Prachi Srivastava   (Prãçhî🧡...✍️)
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Joined 30 December 2019


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Joined 30 December 2019
4 APR AT 22:58

कभी आज़ाद थी
जो विचारधारा
सामाजिक दायरों में पकड़ गई।

ज़िंदगी तब भी थी,
ज़िंदगी अब भी है,
मगर सांसें जकड़ गईं।

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4 APR AT 22:18

मतलब एक नज़र उसकी मुझ पर ही रहती है।

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22 MAR AT 14:13

कहानियां हैं और किस्से हैं,
खुशी और गम के कई हिस्से हैं।

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21 MAR AT 1:37

निगाहों से पूछो जहां रुक गई, क्या अलग था उसमें?
निगाहों की भाषा, वो निगाहें समझ गईं क्या गलत था उसमें?

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21 MAR AT 1:26

हर हाल में जीना सीख लिया है,
ऐसा करो, कोई और दुआ करो तुम अब।

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4 MAR AT 2:05

कुछ बातें हो गईं, कुछ रह भी गईं।
वो खामोशियां बहुत कुछ कह भी गईं।

जो समझ आई, वो कहानी लगी उसको
ये दर्द ज़िंदगी बिना शोर किए सह भी गई।

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25 JAN AT 3:15

गर मैं ज़िक्र कर दूं, यकीनन भीड़ हो जाएगी।
उस अनचाहे शोर से,मेरी ख़ामोशी कहीं खो जाएगी।

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11 NOV 2023 AT 23:38

बन सकते थे जो मुझे इस अंधकाररूपी सफ़र में सही रास्ता दिखाती,
मगर गलती तो तेरी भी नहीं, अंधेरे में तो परछाईं भी नज़र नहीं आती।

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30 OCT 2023 AT 0:34

तेरी खामोशियां भी कहती हैं मुझसे
वो जो तेरी आंखों में दिखता है।

तू शायद कभी न जाने ,मेरे ज़हन में
एक जगह वो भी है जहां तू रहता है।

तेरा मिलना खूबसूरत इत्तेफ़ाक था
तेरा होने से अब सुकून मिलता है।

कहीं खो दी थी जो कलम मैंने आज मिली
जब लिखना चाहा तो दिल तेरा नाम लिखता है।

बस तेरा नाम लिखता है।❤️

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30 OCT 2023 AT 0:03

बड़ा नाज़ है तुझे ख़ुद पर,
मुझे तो न दिखती
कोई बात है क्या?
तारीफ़ करूं तो करूं क्यों,
तू चांद है क्या?

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