आंसुओं से निहारूं,
हर दिशाओं में
तुम्हें ही तलाशा है माधव,
तुम्हारी बावरी ने।
राधे–राधे की गूंज से,
मन का कोई कोना, रिक्त नहीं।
किसी रोज मोहक छवि लिए,
सांवरे तुम आओगे,
कर दोगे प्रेम से सिक्त।
ऐसी आस लिए, ये प्रतिक्षारत्त बावरी,
कभी नयन भिगोती है,कभी हंसती है,
कभी नाम का सुमिरन कर नृत्य,
काश कि आओ ऐसे,
मेघ आते हैं, सावन में जैसे,
सागर में उठती लहरों के जैसे,
लौट आते हैं, पतझड़ के बाद,
पंछी जैसे।
उस रोज मैं लूं , तुम्हारे पांव पखार,
आंसुओं से, निहारूं तुम्हें बारम्बार।
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