बिल्कुल भी मुँह न खोलूँ क्या
मीठा ही मीठा बोलूँ क्या
सच का सिक्का बेमोल यहाँ
झूठों को झूठ से तौलूँ क्या
किसी और का कोई सहारा न
खुद बोझ खुद ही का ढोलूँ क्या
दुनिया वाले कोई देख न ले
अंदर ही अंदर रो लूँ क्या
माँ, छोड़ के जग के घने झमेले
तेरी गोद में सर रख सो लूँ क्या
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