prachi shrivastava   (प्राची)
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Joined 21 September 2018


Joined 21 September 2018
18 JUL 2021 AT 0:07

बिल्कुल भी मुँह न खोलूँ क्या
मीठा ही मीठा बोलूँ क्या
सच का सिक्का बेमोल यहाँ
झूठों को झूठ से तौलूँ क्या

किसी और का कोई सहारा न
खुद बोझ खुद ही का ढोलूँ क्या
दुनिया वाले कोई देख न ले
अंदर ही अंदर रो लूँ क्या
माँ, छोड़ के जग के घने झमेले
तेरी गोद में सर रख सो लूँ क्या

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27 JUL 2020 AT 15:16

हर पल कुछ नया पाकर पुराना खोना है
ज़िन्दगी भर का बस यही एक रोना है

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22 JUL 2020 AT 7:57

दिल के किसी कोने में,
ख़्वाबों का इक परिंदा है!
जो पूछता रहता है...
ये आईने वाला शख्स,
क्या अब भी जिंदा है?

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19 JUL 2020 AT 7:53

फ़लक से जमीं की कोई दूरी नही लगती
और तमन्ना ज़िन्दगी की अब जरुरी नहीं लगती
कहाँ तो चिड़ियों के चहचहाने से भी चिड़चिड़ा उठते थे
कहाँ अब किबाड़ों की चरमराहट भी बुरी नही लगती

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16 JUL 2020 AT 9:28

कुछ इस अंदाज में
वो अपनी सारी
कहानी कह गया
न वाह निकली
न आह उठी
फकत आंख में
पानी रह गया

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25 MAR 2020 AT 19:51

मान लो सभी कि ये फितरत-ए-इंसाँ की सजा है
या वक्त का तकाज़ा है या कुदरत की रजा है
अभी मौका है खुद को खुद में ढूंढ भी लो यारों
कि, इस थमी सी ज़िन्दगी का अपना ही मजा है

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21 JAN 2020 AT 23:48

न खेल सियासी खेला जाए
न जहर दिलों में घोला जाए
है माटी ये मानवता जननी
धर्मों में न तौला जाए
छोड़ के नारे किस्म किस्म के
जय हिंद सदा ही बोला जाए

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30 NOV 2019 AT 13:31


मन में हजारों उमंग लिए
आंखों में कई रंग लिए
नई-नई थी सपनों की उड़ान
मुझे नापना था पूरा आसमान
समझ में अपनी उम्र से कई बड़ी सी थी मैं
हां लड़की थी इसलिए थोड़ी डरी सी थी मैं


बगिया की सबसे प्यारी कली थी मैं
मां-बाप के पलकों में पली थी मैं
दुनिया से टकराने की हिम्मत में
बेख़ौफ़ जीने की फितरत में
नासमझ थी आई बात न कुछ अक्ल में
हर जगह छिपे हैं भेड़िए इंसान की शक्ल में
क्या करती नहीं बच पाई आखरी दम तक लड़ी भी थी मैं
हां लड़की थी इसलिए थोड़ी डरी सी थी मैं


मेरे सुरक्षा के नारे अमिट है दीवारों में
फिर भी चीख-पुकार भरी है अखबारों में
भारत का भाल फिर शर्मसार हो गया
कैंडल मार्च विरोध प्रदर्शन सब के सब बेकार हो गया
और नहीं अब बस इंसाफ भी दिला दो ना
कब तक जलेगी बेटियां
दो-चार हैवानों को भी जला दो ना
फिर कोई और मेरी तरह सहमी खड़ी ना रहे
हां लड़की हो पर वो डरी ना रहे
the_last_message_from_priyanka reddy
#hangtherapist

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13 NOV 2019 AT 23:44

हसरत-ए-ताज का ये तमाशा सरेआम हो गया
क्या था आगाज क्या अंजाम हो गया
बल पे जिसके चले वो कदम दर कदम
सुना है वही ईमान आज नीलाम हो गया

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5 SEP 2019 AT 22:53

हर दिन नई राह पर चलना बस यही काम है जिंदगी
ख़्वाबों की परवाज़ों का अंजाम है जिंदगी
सुनहरी यादों के सफर को छोड़कर एक दिन
नई बस्ती में नई यादें बसाने का नाम है जिंदगी

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