बड़े होकर हम अपनी लाइफ को कॉम्प्लिकेट कर देते हैं,
जिन्न बातों से बचपन में हमें फर्क भी नही पड़ता था,
हम बड़े होते ही उन्ही बातों को दिल से लगा लेते हैं,
और अपना चैन, सुकून और कई रिश्तों को उलझा देते हैं!-
●Love to write ✍️
°blows candle on 9th October 🥳
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ज़र्रे ज़र्रे में उनकी खुशबू है;
तिनके तिनके में उनकी यादों की महक है;
उनके लिए भी कुछ खास कम नहीं थे हम;
उनके दिल के धड़कनों में बसे थे हम;
एहसास से जिनके चहक उठते थे हम;
सांसों से जिनके महक उठते थे हम;
ना जाने कब उनके जान से अनजान बन गए हम;
गर गुज़र भी जाते हैं सामने से;
तो वो हमें अक्सर नजरंदाज कर देते हैं;
ना जाने कब नजदीकियां दूरियों में बदल गई;
ना जाने कब उनके जान से अनजान बन गए हम!
-
स्कूल की सीट से लेकर, उन दोस्तों के चिढ़ाने तक;
लेटर्स के जरिए बात करने से लेकर, एक दूसरे पर नजर पड़ते ही शर्माने तक;
बस पर सीट रखने से लेकर, बात बात पर रूठने मनाने तक;
उस बचपन के नादान प्यार की बात ही कुछ और थी!
ना कोई उम्मीद थी ना कोई शिकायत,
अगर कुछ था तो बस आंखों में सच्चाई;
ना जाने हम क्यों बड़े हो गए,
प्यार तो अब भी है, पर दिल्लगी में अब वो बात कहां,
उस बचपन के नादान प्यार की बात ही कुछ और थी!
-
सुनो ना!
बड़े दिनों बाद आज मैंने इन पन्नो पर सियाही फेरा है;
छवि बना दू या तुम्हारे बारे में कुछ लिख दू?
आज फिर से तुम पर पहले जैसा प्यार आया है!
महीने बीत गए और अब तो कई साल भी,
मैं तो वहीं रह गई, पर तुम नही,
हमारी दास्तान - ए - मोहब्बत तुम भूल गए क्या?
वो कसमें जो खाई थी हमने साथ चलने की,
उन रास्तों पर तुम कहीं भटक गए क्या?
सुनो ना!
बहूत याद आती है तुम्हारी, तुम लौट आओगे क्या?
मेरा दिल फिरसे बेचैन है, तुम मरहम कर दोगे क्या?
आज फिर से तुम पर पहले जैसा प्यार आया है;
तुम मेरी हथेलियों के लकीर में लौट आओगे क्या?
-
किसे पता था, वो शक्स मुझसे मन ही मन रूठा था;
नम थी आंखें उसकी भी, जब दूरियों की गम ने उसे छुआ था;
कुछ थी मजबूरियां मेरी, कुछ थे उसके भी;
कभी ना टूटे ये डोर कहते थे जो लोग हमें साथ देखकर,
आज खामोश हैं ज़ुबान उनके भी;
रोती क्यों हो बेटा, कहकर बिलख पड़ी दामन में खेली जिसके मैं सदा, वो मां मेरी;
मां वो चला गया छोड़ कर तेरी गुड़िया को, के कर मैं भी रो पड़ी;
किसे पता था, वो शक्स मुझसे मन ही मन रूठा था;
नम थी आंखें उसकी भी, जब दूरियों की गम ने उसे छुआ था!-
यूं मुझसे मुख्तलिफ हो गए तुम,
ना जाने क्या खता मुझसे हो गई।
मान बैठी थी तुमको तो खुदा मैंने,
फिर ना जाने क्या गुनाह मुझसे हो गई!-
चंद लम्हों में मुलाक़ात तुमसे हो गई थी,
ना जान कब लम्हों को चुराकर,
खास हो गए थे तुम दिल के,
नाम सुनकर जिसकी चिढ़ता था मन मेरा,
क्या खबर थी धड़कने धड़केंगी नाम से उसके कभी।
चंद लम्हों में मुलाक़ात तुमसे हो गई थी,
अब तलक शुक्रगुजार हूं, रब की,
दुवाओं को मेरे कुबूल कर उसने,
तेरे मूरत में भेट करदी उसने।-
काश जिंदगी उतनी आसान होती,
पल में जो चाहा, वो पा लिया जैसे।
ख्वाईश जागते ही, हासिल कर लिया जैसे।
सूरज के ढलने से पहले, ख़ुद को उसकी रौशनी से भिगो लिया जैसे।
काश जिंदगी उतनी आसान होती,
कविताओं और कहानियों में उल्लेख होती है जैसे।-
जिंदगी एक पहेली है,
जितना भी सुलझाओ,
ख़ुद उलझते चले जाओ,
तेज़ भवंडर में फस जाने का,
खौफ तो सभी में होता है,
जो इसे पार कर जाने की हिम्मत रखता है,
वही ज़िंदगी का साजी होता है।
-
खो जाती हूं अक्सर अब मैं,
यूं भीड़ में अकेले चलते चलते;
डर लगता है अब रातों में,
तेरे सपने बुनते बुनते;
खो ना दु मैं खुद की वजूद को,
तुझे हर जगह तलाशते तलाशते।-