जो अब खिल रहा है बसन्त!
मैं , सोचती हूँ!
पतझर कैसे बीता होगा!?
-प्राची।-
विज्ञान,कहता है,
चाँद! पाषाण का खंड मात्र है!
आध्यात्म सिखाता है,
पाषाण से,अतुल्य प्रेम!
और यह भी,कि!
प्रेम में हर वस्तु!"पूजनीय"है..!
-प्राची
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श्री राम होने का अर्थ है,
करुणा से परिपूर्ण होना!
आत्मा का इतना करुणामयी हो जाना,
के आप के स्पर्श मात्र से
पाषाण भी जीवंत हो जाए,
पाषाण भी हरित हृदय हो जाये।-
हृदय में,प्रेम
ईश्वर की तरह वास करता है,
प्रेम से पूर्ण हर मनुष्य,
पूजनीय है..!
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ढलता है दिन कभी धीमें,
कभी पल में ओझल ठहरता है
मगर वो अपनी हर सुबह ओ' शाम ,
मेरे ही नाम रखता है,
वो मुझ पर आज कल,
कुछ कुछ मेहरबान लगता है।।
होती है जुगनुओं की गली क्या?
ना जाने क्या तारों का आसमान होता है?
वो मेरे कदमों में लाकर,चुपके से,
कृष्ण-पक्षी चाँद रखता है।।
वो मुझ पर आज कल
कुछ कुछ मेहरबान लगता है।।
मेरी हर बात के, बदले अपनी मुस्कान रखता है।
वो मुझ पर,
आज कल,
कुछ कुछ मेहरबान लगता है।।-
स्वप्न खण्डित हो जाना दुःखद होता है,
दुःखद है विरह का व्रण सह लेना!
दुःखद होता है, अपनत्व का परित्याग..!
किन्तु समस्त संसार में सबसे अधिक दुःखद है,
एक स्त्री का" श्रृंगार "त्याग देना।।
प्राची।-
मैं एक ऐसी भीड़ का भागी हूँ..!
जहाँ सत्य,एक कल्पना है,
धर्म ,एक कल्पना है,
ईश्वर, एक कल्पना है,
और 'प्रेम' इस कल्पना का भी पात्र नहीं ..!
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मैं सोचती हूँ प्रलय उपरांत कैसी शांति होगी?
ओमकार जैसी..!
हाँ..!
निश्चित ही " ओमकार" जैसी..!
क्योंकि,
ईश्वर की सत्ता नित्य है!
शाश्वत है!
अनादि, अनंत है!
क्योंकि वही विभु,वही व्यापक है!
क्योंकि वही , निराकार "ओमकार" है!
सदा से, सर्वदा तक..! 🕉-