वो ज़िन्दगी ही क्या जिसमें दर्द ना हो
मुस्कुरा कर तो लम्हे गुजरते है...-
उलझे उलझे खोए खोए
यूं ही चले जा रहे है हम...
कतरा कतरा लम्हा लम्हा
जिंदगी भी संग हो चली...-
दिल की बेचैनी को दिल के बाहर ना दिखा पाए
अंदर की उस हंसी को बाहर कैसे खिलखिलाए
उस भीनी सी मुस्कुराहट को बस खुद ही देख पाए
होती है ना कभी कभी ऐसी ही कुलबुलाहट-
मैं कोई खूबसूरत माहताब नहीं
मैं तो माथे पर सूरज उगाए एक आग हूं
जिसकी रोशनी किसीने देखी ही नहीं है
जो जान लोगे तो ना जलोगे ना बुझोगे
बस इस एहसास को भूल नहीं पाओगे-
किसी के जहन में आने के इंतजार में
यूहीं भटक रहे थे हम
बस अभी अभी पनाह मिली है
लगता है आज सुकून की नींद सो सकेंगे हम-
ना जाने क्यों
तुझे हर किस्सा सुनाने को जी चाहता है
जबकी दुनिया बेताब है
हमारे दर्द पे आंच सेकने के लिए-
इश्क के समंदर की लहरों ने,
कुछ इस कदर तैरना सीखा दिया
किनारों को ढूंढ ने की आदत भी,
अब छूट चली है...-
इश्क के समंदर की लहरों ने,
कुछ इस कदर तैरना सीखा दिया
किनारों को ढूंढ ने की आदत भी,
अब छूट चली है...-
रात का सन्नाटा तुमसे है खिल जाता
उसके मिलने का एहसास बस यूं ही है हो जाता
चांदनी है वो जो साथ निभाना जानती है
खुद में समा लेने का हुनर भी खूब पहचानती है
हर जज्बात को अपने आगोश में यूं ही नहीं कोई छिपाता
चांदनी है वो जो दर्द में सुकून देना जानती है
यूं कतरा कतरा भीनी रोशनी बिखेर जाती है
सूरज की जिम्मेदारी को रातों में निभाती है
चांदनी है वो जो अक्सर मुझसे मिलने चली आती है-
वक़्त को थामना आसान ना था
तभी तो उस पल में खुद को बहने सा दिया
गिला नहीं, ना ही शिकवा है इस बात का
कुछ दोस्तों को दिल के करीब आने क्यों दिया।-