Prabuddha Kaustubh   (कौस्तुभ की कलम से)
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Joined 15 February 2018


Joined 15 February 2018
5 OCT 2019 AT 20:40

रिश्ते कितने डिजिटल होते जा रहे दिन प्रतिदिन हम पीछे छोड़ते जा रहें हैं साल दर साल वो लम्हें वो खुशियां जो हम मिल कर साथ बाटते थे वो छोटी छोटी खुशियां जैसे दोस्तों के जन्मदिन पर उन्हें अपने पॉकेट मनी से तोहफ़े देना उनके लिए केक लाना ,उनके घर जा जाकर माँ के साथ टेड़ी मेड़ी पुरिया बनाना और दोस्त के खेतों में जिसे हम शान से फार्म हाउस कहते थे बिना किसी आधुनिक चूल्हे की मदद से बेहतरीन चिकन और शाकाहारियों के लिए पनीर बनना और जान बूझ कर पनीर में मिर्च अधिक डालना फिर दोस्तों से पीटना पीटाना उस दिन बिना डरे घर शान से देर से आना कभी कभी तो दोस्त को सरप्राइज करने मिलों दूर उसके घर पहुँच जाना और उसके पार्टी न देने पर उसे खूब लतियाना । वो दशहरे पर दफ़्ती के रावण बनाना और उसमें ऊन बम डाल के उसे उड़ाना । दशहरे की शाम टोली बना के देर रात तक सड़कों की भीड़ का हिस्सा बनना और दिवाली में हाथ में बिड़िया बम जला कर ख़ुद को शक्तिमान समझना कितनी सारी खुशियाँ बटोर लाते थे हम । ज़िंदगी को बेहतर से बेहतरीन बनाने की होड़ में हम ख़ुद को पीछे छोड़ते जा रहे हैं साथ ही रिश्तों को भी जो मोबाइल के कॉन्टेक्ट लिस्ट इनबॉक्स वाट्सअप से होते हुए एक दिन ब्लॉक या डिलीट हो जाते हैं । बचा लीजिये इन्हें अपने अंदर के बच्चें को ज़िंदा रखिये ।

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3 OCT 2019 AT 21:57

लोग आपके द्वारा की गई कड़ी मेहनत की परवाह नहीं करते हैं, वे सिर्फ परिणाम देखते हैं। उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं कि आपने इस मुकाम को पाने के लिए (जो आप ने हासिल कर लिया हो या अभी उसके लिए परिश्रम कर रहे हों) कितना परिश्रम किये हैं या कर रहें हैं । इसके लिए आपने क्या क्या त्याग किया है । यकीन मानिए जीवन की इस लड़ाई में आप के सिवा कोई और नहीं है आपका ।

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2 OCT 2019 AT 11:45

ख़ुद को इतना सकारात्मक बनाइये की नकारात्मकता से भरा हुआ व्यक्ति भी आपसे मिल के नकारात्मक से नकारात्मक परिस्थिति में भी सकारात्मकता ढूंढ ले ।

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29 SEP 2019 AT 22:19

रिश्ते विरासत की तरह होते हैं जिनकी नीव विश्वास पर टिकी होती है इन्हें यूं ही अफवाहों के पत्थर की चोट से टूटने न दें इन्हें सम्भाल कर रखें । ताकि वक़्त आने पर ये रिश्ते आपको सम्भाल सकें ।

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26 SEP 2019 AT 23:15

अच्छा आदमी था... इन तीन भारी भरकम शब्दों को ख़ुद के लिए सुनने के लिए मरना पड़ता है। जीतेजी सुन लिए तो ख़ुश किस्मत हैं आप । समय रहते अच्छे को अच्छा बोलिये इससे पहले की वो #है से #था तक का सफर तय कर ले ।

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24 SEP 2019 AT 21:57

हर रिश्ता वक़्त माँगता हैं ज़िन्दा रहने के लिए । वरना दम तोड़ देता है किसी रोज़ अपनों द्वारा न मिलने वाले वक़्त की आस में ।

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14 SEP 2019 AT 9:40

सही मायने में हिन्दी दिवस तभी होगा जब विश्व भर में किसी भी भारतीय को हिन्दी बोलने में शर्म महसूस न हो।

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17 JUL 2019 AT 21:54

किसी लड़की को विवाह के उद्देश्य से देख कर समाज में दस लोगों के सामने उसका तमाशा बना के उसके रंग रूप की वजह से उसे ना पसन्द करने का हक किसी पुरूष को (अफ़सोस इसमें महिलाएं भी शामिल हैं ) ये अधिकार देता कौन है? शायद ये घटिया समाज जिसे आपकी कोई परवाह नहीं लेकिन आपको इनकी बहुत है ।

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17 JUL 2019 AT 15:59

यहाँ कोई ख़ुद को ग़लत मानने को तैयार नहीं ख़ुद की नज़र में सभी सही हैं। मगर असल बात तो ये है कि ग़लत सभी हैं।

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10 JUL 2019 AT 14:05

अक्सर हम सही होते हैं लेकिन कुछ देर के लिए भावुक हो कर खुद को ग़लत मान लेते हैं । लेकिन हम गलत होते हैं हमेशा की तरह जो ख़ुद को गलत मान लेते हैं। वास्तव में गलत वो ख़ुद होते हैं जो आपको गलत मानते हैं आप के लाख अच्छाइयों के बावजूद ।

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