Prabuddha Kaustubh   (कौस्तुभ की कलम से)
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Joined 15 February 2018


Joined 15 February 2018
12 FEB 2022 AT 15:59

जहाँ कमरें में क़ैद हो जाती हैं ज़िंदगी ,लोग उसे बड़ा शहर कहते हैं और ऐसे ही एक बड़े शहर की तलाश है मुझे वर्षों से जहाँ कर सकूं मैं क़ैद ख़ुद को हमेशा के लिए ।— % &

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1 FEB 2022 AT 22:48

अपने कल को बनाने के लिए अपने कल जो भुलाना पड़ता है ।— % &

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5 JAN 2022 AT 23:53

लोग या तो मासूम होते हैं या हद से ज़्यादा होशियार बीच का कुछ नहीं होता ।

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1 JAN 2022 AT 18:15

हर नया साल एक दिन पुराना हो जाता है और हर साल कुछ पुराने लोग हमारे लिए नये हो जाते हैं ।

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25 DEC 2021 AT 0:50

जान जाती थी जिसके जाने के ख़्याल भर से...
मैंने उसका जाना भी देखा है...फिर ये दिसंबर तो बस एक महीना है ।।

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23 NOV 2021 AT 21:44

लोगों के थोड़ा क़रीब आने के लिए पहले कितना दूर जाना पड़ता है न ।

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28 OCT 2021 AT 20:12

धैर्य कितना क्यों और कैसे रखा जाये ? वो भी तब जब आपका धैर्य रोज़ अपनी सारी सीमाएं लांधता हो टूटता हो गिरता हो फ़िर ख़ुद सम्भलता भी हो आख़िर कब तलक धैर्य अपनी धैर्यता बनाये रखे । आख़िर धैर्य की धैर्यता की भी एक सीमा है ।

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8 OCT 2021 AT 23:05

जीवन में कभी न कभी एक वक़्त ऐसा भी आता है जब हमें उन छोटी-छोटी बातों पर भी सोचना पड़ता है जिसके बारे में हमनें पूरे जीवन काल में (अब तक जितनी ज़िन्दगी जियें हैं) कभी ये नहीं सोचा होता कि इस बात के लिए भी मुझे कभी सोचना पड़ेगा । पर अफ़सोस सोचना पड़ता है क्योंकि वक़्त हमें सोचने पर मजबूर करता है ।

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5 OCT 2021 AT 23:49

लोग जितना परखते हैं उतना समझते नहीं हैं।

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14 SEP 2021 AT 22:59

हम जिसे दुनिया मानते थे कभी वो भी आज दुनिया निकला ।

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