लफ्ज़ों और लहज़ों का ज़रा लिहाज़ रखना,
कई मसखरों को खुद मज़ाक बनते देखा है मैंने!-
Foodie,Aquarian!
चलो बांट लें इश्क़ की जिम्मेदारियां,
तुम तारीखें याद रखना,
मैं लम्हों का हिसाब रखूंगा!!-
शौक ही बनाना मुझे,
आदत न बना लेना,
किस्से सा ही रखना,
हिस्सा न बना लेना,
मुसाफ़िर सा हूं,
ठहरता नही ज़्यादा,
सराय इक बनाना,
दिल के कोने में,
भूल से कहीं वहां,
मेरा 'घर' ना बना लेना!— % &-
घर्षण पर इक आग सी पैदा करते हैं,
ये जिस्म हमारे, कहीं पत्थर के तो नही?-
इश्क़ करने का कोई मुक़म्मल वक़्त नही होता,
चुस्कियां चाय की हों या सिसकियां जुदाई की!-
एहतियातन कुछ लकीरें खींच रखी हैं,
दूरियां ज़रूरी हैं, नज़दीकियों की अहमियत के वास्ते!-
मुसीबतें अक़्सर मेरी चौखट से लौट जाती हैं,
दुआओं की किश्तें माँ-बाप जो भरते रहते हैं!-
कंधों से ज़मीं, कभी ज़मीं से कंधों पर,
सफ़र-ऐ-ज़िंदगी, बस इतना ही तो है!-
क़ुर्बानी और विसर्जन,
काश ये इंसान,
अपने द्वारा पाले हुए,
और सर पर बैठाये हुए,
अहम का भी कर पाता!-