Prabodh Nagar   (Prabodh)
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Observer,Believer,
Foodie,Aquarian!
Joined 30 December 2016


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2 APR 2022 AT 1:00

लफ्ज़ों और लहज़ों का ज़रा लिहाज़ रखना,
कई मसखरों को खुद मज़ाक बनते देखा है मैंने!

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10 MAR 2022 AT 0:43

चलो बांट लें इश्क़ की जिम्मेदारियां,
तुम तारीखें याद रखना,
मैं लम्हों का हिसाब रखूंगा!!

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5 FEB 2022 AT 9:57

शौक ही बनाना मुझे,
आदत न बना लेना,
किस्से सा ही रखना,
हिस्सा न बना लेना,
मुसाफ़िर सा हूं,
ठहरता नही ज़्यादा,
सराय इक बनाना,
दिल के कोने में,
भूल से कहीं वहां,
मेरा 'घर' ना बना लेना!— % &

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29 AUG 2019 AT 0:22

कंधों से ज़मीं, कभी ज़मीं से कंधों पर,
सफ़र-ऐ-ज़िंदगी, बस इतना ही तो है!

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5 DEC 2018 AT 1:44

टूटने पर अक़्सर रास नही आता,
ये आईना भी कहीं मर्द तो नही!

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5 SEP 2017 AT 11:39

क़ुर्बानी और विसर्जन,
काश ये इंसान,
अपने द्वारा पाले हुए,
और सर पर बैठाये हुए,
अहम का भी कर पाता!

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15 JUN 2017 AT 7:20

છાપા જેવી આ જિંદગી,

સુખ અને દુઃખ ની ખબરો એમાં સમાયેલી હોય,

સમય વીતે, તો એની જરૂર પણ બદલાવી જાય,

શરીર ના જેમ, મહત્વ પત્યા પછી,

પસ્તી માં વેચાયી જાય!

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23 APR 2017 AT 2:21


सिसकियाँ निकलवाने को भीख मांगता है,
जिस्म वो भभक जाने को आग मांगता है,

दरिया किनारे के पेड़ों की तरह फड़फड़ाता है,
सफेद सूत की चादर में तूफान कोई जागता है,

समतल हो जाता है तब हर उभार गहराई में,
बवंडर हवस का जब नस नस में भागता है,

नमक के सैलाब में गोते लगाते हैं जज़्बात,
धधकते लम्हों के घूंटों से प्यास बुझाती है रात!
















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1 APR 2017 AT 13:11

ખમણ જેવું આ જીવન,

સંસ્કારો નો લોટ

પ્રેમ નો તડકો,

હાસ્ય ની ખટાશ,

સંતુલિત ક્રોધ ની ચટણી,

ઉપર વિવેક ના ધાણા નો શૃંગાર!






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16 JAN 2017 AT 1:01

सर्द सी ये हवाएं,जब कभी हलके से ठिठुरा जाती है,

जबरन स्वेटर पहनाने वाली माँ की वो झिड़की,
बहुत याद आती है।


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