Prabhat Sharma   (Prabhat मथुरा_वासी)
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Joined 28 November 2018


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Joined 28 November 2018
10 OCT 2021 AT 22:49

वख्त के साथ गुजर चुका हूं मैं
मुट्ठी की रेत सा फिसल चुका हूं मैं
हुआ करता था बर्फ़ सा कभी,
जाना, अब पिघल चुका हूं मैं ।

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14 AUG 2021 AT 23:31

जाना,
मेरे हर दिन की किताब को तेरा चेहरा देख कर बंद करना,
मुझे इस कदर खुशी देता है जैसे किसी राही को मंज़िल !

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14 AUG 2021 AT 18:01

जाना ,
जब से तुम आई हो,
ज़िंदगी इस कदर महक रही हैं
कि अब फूलों की जरूरत नहीं !

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7 JUN 2020 AT 12:35

खुशी का हर पल भर के जियो जनाब,
कम्बखत दुनिया में ना जाने ये फिर कब मिले !

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25 MAY 2020 AT 17:37

ईद तुम्हारी थी, हमने मंदिर सजा दिये.
तुम्ने पानी पिलाया, हमने दिये जला दिये.
तुमने अहम् छोडा हमने जाति छोड़ी ,
तुमने अहम् छोडा हमने जाति छोड़ी ,
सब कुछ त्यागा ओर भाई गले लगा लिये

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6 APR 2020 AT 4:37

समझते थे ज़िंदगी जी रहे है हम्,
मगर खुद्को, दो लम्हे भी जिये ना गये!

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6 APR 2020 AT 4:30

और ये सब चोचले है अमीरो के,
मुझे तो कॉफ़ी, रास भी नहीं आती!

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5 APR 2020 AT 3:43

तुम यों ना मुझे सताया करो...
quarantine में ना बाहर जाया करो.
पराये virus को ना अपना बनाया करो..
एक जिम्मेदारी तुम भी निभाया करो.

बच्चो को ये गलत पाठ ना पढाया करो.
गलती खुद करके, दोषी सरकार ना बताया करो.
खुद के लिये तो नियम अपनाया करो.
तुम यों ना घर से बाहर जाया करो.

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6 FEB 2020 AT 12:57

आंसू अक्सर पाक रूह दर्शाते है,
इन्हें कमजोरी की निशानी तो समाज ने बनया है!

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6 FEB 2020 AT 12:48

सोचा था भुला देंगे उसे,
मगर कम्बखत तो ये दिल है, जो आज भी रो रहा है!

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