Prabhat kumar   (Prabhat)
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Joined 5 December 2017


Joined 5 December 2017
29 SEP 2020 AT 22:15

अजीब है -

व्यक्ति पहले जात देखता है, गोत्र देखता है, सैलरी देखता है, जायदाद देखता है, कुंडली देखता है, और फिर अंत में कहता है कि जोड़ियाँ तो ऊपर बनती है...✍️

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14 JUN 2020 AT 23:06

ज़िन्दगी नहीं बदली परिस्थितियां भी नहीं बदला
हम लड़ने वालों का जज़्बा भी नहीं बदला
है शौक ए सफर ऐसा, एक उम्र हुई हमने
मंज़िल भी नहीं पायी, रास्ता भी नहीं बदला !

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2 MAY 2020 AT 3:20

कुछ रिश्ते दिल से तो कुछ रिश्ते दिमाग़ से निभाए जाते हैं
दिल से निभाने में दिमाग़ की जरूरत नहीं होती और दिमाग़ से निभाने में दिल की जरूरत नहीं होती पर दिमाग़ से निभाने में हमें बार -बार social media पर और status लगाकर दुनिया को बताना पड़ता है!

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13 APR 2020 AT 23:08

बेवजह घर से निकलने की जरूरत क्या है |
मौत से आँख मिलाने की जरूरत क्या है ||

सबको मालूम है बाहर की हवा है कातिल |
फिर कातिल से उलझने की जरूरत क्या है ||

जिन्दगी हजार नियामत है, संभाल कर रखे |
फिर कब्रगाहो को सजाने की जरूरत क्या है ||

दिल को बहलाने के लिये, घर में वजह काफी है |
फिर गलियों में बेवजह भटकने की जरूरत क्या है
By :- गुलज़ार साहब

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19 MAR 2020 AT 0:09

किसी किसी इंसान की सोच इतनी छोटी होती है
जैसे कुआँ में गिरा एक मेढक जिन्हें लगता है
बस यही है दुनियां और इतनी सी है जिंदगी
जब तक हम बंद कमरे से बाहर नहीं निकलते
तब तक न हमारी सोच बदल सकती और न ही जिंदगी !

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2 DEC 2019 AT 0:25

मैं स्त्री हूँ मैं नारी हूँ, देश की एक कहानी हूँ
मैं बेटी हूँ मैं माता हूँ,मैं बलिदानो की गाथा हूँ
मैं श्रीमद्भगवद गीता हूँ,मैं द्रोपदी हूँ मैं सीता हूँ
समाजों की दुनियां ने ये कैसी नियति दिखलाई
कभी जुए में हार गए कभी अग्नि परीक्षा दिलवाई |

कलयुग हो या सतयुग हो इलज़ाम मुझी पर आता है
क्यों घनी अँधेरी सड़कों पर चलने से मन घबराता है
बेटा हो तो खुशी और बेटी पर दुःख जताया है
इतिहास के कुछ पन्ने ने मुझे जुए, शराब बताया है|

इनके गुनाह करने से पहले ही
रिहाई का आवेदन लिखा हुआ है
न्याय की उम्मीद करूँ भी तो किससे
जब खुद कानून यहाँ बिका हुआ है |

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27 JUL 2019 AT 20:49

हमारी बातों में भी अब दूरी सी हो गई
कुछ तेरी खुशियां कुछ मेरी भी मजबूरी सी हो गई
पलटेंगे जब किसी दिन अपनी जिंदगी के कुछ पन्ने
चलेंगे फिर वही पुरानी यादों के शहरों में।।

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12 MAY 2019 AT 12:50

घुटनों पर चलते - चलते न जाने कब खड़ा हुआ
माँ तेरी आँचल के साये में जाने कब बड़ा हुआ भटक रहा हूँ मैं किसी अनजाने अंधेरी राह में
फिर से मुझे बच्चा बना दे लेकर अपनी पनाह में $

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19 MAR 2019 AT 19:54

बरसों बाद स्कूल के सामने की गलियों से गुजरा तो स्कूल की खामोशी ने पूछा तू तो मुझसे परेशान था अब कहो जिंदगी का इम्तिहान कैसा चल रहा है।।।

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13 MAR 2019 AT 23:58

हम किसी से खफा हो कर खामोशी
तो ओढ़ लेते हैं, पर हमारे अंदर की शोर- शराबा
कम नहीं होती बल्कि और बढ़ जाती है।।

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