Prabhash Kumar mishra   (सत्यम्)
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Joined 29 December 2019


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Joined 29 December 2019
3 MAY AT 23:49

जिंदगी भर लड़ने-झगड़ने
की महफ़िल सजाने वाले,
रूप बदल लेते हैं कई बार,
घड़ियाली आंसू बहाकर।

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26 APR AT 18:42

"मेरे विचार: मेरे अनुभवों की बानगी"
मुझे प्रतीत होता है, की सब कुछ पहले से निश्चित है या फिर कुछ भी नहीं। हम इच्छाएं कर सकते हैं, ज्यादा से ज्यादा कर्म कर सकते हैं, पर जरूरी नहीं है कि वह हमें प्राप्त ही हो। कर्मफल प्रकृति के गुणों व कर्म के सम्मिलित प्रयास से तय होता है, या यूंँ कहें की जगत नियंता द्वारा मिलता है।
हमारे हाथों में कुछ भी नहीं है, और यदि है तो सिर्फ "प्रयास"। जीवन में नित नये संघर्ष आते हैं, समय एक जैसा नहीं रहता, परिस्थितियाँ बदलती हैं। यहां कोई ऐसा नहीं है जिसके जीवन में संघर्ष ना हो ,समस्याएं ना हो। कठिन समय से लड़कर /जीतकर ही सफलता मिलती है और व्यक्ति के गुणों का विकास होता है। हांँ, कुछ चीजें होती हैं जो हमारे चाहने या करने से भी नहीं होती, उनको भगवान की इच्छा पर छोड़ देना उचित होता है। समय के साथ आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियों का आकलन भी जरूरी है।
आज के समय में सबसे जरूरी है-"परिवार और स्वास्थ्य"। यह सबसे बड़ा धन है, इनके होने से ही आप जीवन में कुछ कर सकते हैं, यदि आपके पास है तो यकीन मानिए आप सबसे सफल व्यक्ति हैं।

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29 MAR AT 11:54

"प्रलयकाल"
प्रकृति की ललकार देख,
देख भीषण हुंकार देख,
समय बदलती चाल देख,
बेबस और बेहाल देख,
देख मानव,
तेरा क्या हाल देख।

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17 MAR AT 23:36

तू भोर का पहला उजियारा,
मैं संध्या की आखिरी दीप्ति।

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4 MAR AT 18:38

"जिद्द-जीत की"
शिखर चढ़ जाते हैं लोग कई,
लड़खड़ाते कदम से भी,
लिखे जाते हैं इतिहास बड़े,
टूटे क़लम से भी,
हो रगों में साहस और,
जीत का जुनून यदि तो,
आसमांँ भी बौना नजर आता है,
मैं सारा जहांँ घूम लूँ फिर भी,
मुझे हर तरफ़ हिंदुस्तान नजर आता है।

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26 FEB AT 12:17

"मैं ही शिव"
प्रेम में अनंत मैं,
क्रोध में प्रचंड मैं,
न माया में, न मोह में,
आदि अनंत मैं,
ध्यान में लीन मैं,
नृत्य में तल्लीन मैं,
समाधि में संपूर्ण मैं,
राग में परिपूर्ण मैं,
कण-कण में मैं,
पंचतत्व भी मैं,
श्मशान का अंधकार मैं,
भस्म श्रृंगार मैं,
मैं ही विष्णु,
मैं ही ब्रह्मा,
शक्ति स्वरुप में मैं,
कैलाशपति भी मैं ही।

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20 FEB AT 0:09

"शिवजंयती"
सप्तसिंधु की घाटी में,
शिवनेरी की माटी में,
मांँ जीजाऊ के अंगने से,
निकला था एक शेर "शिवा",
आंखों में भरकर अंगारे,
मां जगदंँबा जैसा संहारे,
हर हर महादेव का जयघोष करे जब,
दुश्मन का दल फिर थर-थर कांपे,
हिंदवी स्वराज्य की अलख जगाने,
धर्मध्वजा लहराने को,
मुगल सल्तनत को चुनौती देकर,
भारत भूमि मुक्त करे जो,
वह "छत्रपति" कहलाता था,
हे भारत मांँ के लाल,
हे वीर शिरोमणि,
वंदन है ,अभिनंदन है,
आपकी पगरज भी,
चंदन- चंदन है।


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14 FEB AT 20:04

"मेरे हिस्से"
किसी के हिस्से प्रेम आया,
किसी के हिस्से आया संघर्ष,
मेरे हिस्से आई विरह,
और साथ लाई संघर्ष।

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8 FEB AT 20:55

"हिसाब"
वो देते रहे ज़हर हमें धीमे-धीमे,
हम मुफ्त की रेवड़ियों पर जान लुटा बैठे,
कभी ना सोचा क्या है कोई हिसाब,
यह मुफ्त की रेवड़ियां वो देते कहांँ से हैं,
हम जिंदगी भर, मेहनत करते रहे,
और सेल के चक्कर में पड़ लुटते रहे,
हमें फुर्सत कहांँ छोटी-छोटी ,
चीजों का हिसाब रखने की,
हम तो आम आदमी है साहब,
रोजमर्रा की जिंदगी में बस उलझे रहते हैं।

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5 FEB AT 22:36

"प्रतीक्षा"
प्रेम में प्रतीक्षा,
कुछ प्राप्त करने के लिए,
की गई प्रतीक्षा,
बड़ी ही असहनीय होती है,
इसमें मन और मस्तिष्क,
के बीच में
द्वंद चल रहा होता है,
मन कहता है, अब और
प्रतीक्षा नहीं होती,
मस्तिष्क कहता है,
थोड़ा धैर्य रख,
मन और मस्तिष्क,
के बीच में चलने वाला यह द्वंद,
ही जीवन है।

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