रचनावाद के अनुसार -
शिक्षक ज्ञान के स्रोत के रूप में नहीं
बल्कि ज्ञान प्राप्ति के सहयोगी की भूमिका अदा करता है।-
बहुत कुछ मिला,
जो उपर वाले की हसरत रही।
तू जो ना मिला,
वो चाहत मेरी अधूरी रही-
तुम्हारे यादों के पन्नों में, जो इंतज़ार है
विरह की अग्नि में, वो काँटों सा उपहार है-
विफलताओं में भी छिपी, सफलताओं का दौर है।
पहुँचेंगे मंजिल वो भी, उनकी बात कुछ और है......-
Dharma never becomes many. It is always one. There is no variety of it. Views may be many- even as many as there are people. In my opinion, to speak of Hindu Dharma, Christian Dharma, Mohammedan Dharma, Buddhist Dharma etc. is wrong; rather they are so many views".
🙏Sree Sree Thakur Anukulchandra🙏-
हम सभी का मूल धर्म शान्ति है।
अत: हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि
धर्म भी शरीर के हैं।
और एक जन्म तक है।
शरीर बदलने पर शरीर का धर्म भी बदल जाता है।-
वो बैठे रहते हैं रास्तो मे हाँथों को फैलाए हुए
मैं गुज़रता हूँ उन रास्तो से अपनी नजरे चुराए हुए
अपनी ही जिंदगी को जिए जा रहा हूँ,
कुछ भी तो नहीं मैं उनके लिए किए जा रहा हूँ-
हूँ मै नश्वर
नहीं ढूँढता मैं ईश्वर
दिल में समाई फकीरी
दुनिया अब पड़ गई फीकी-
डूबती हुई आशा,
चुभती हुई निराशा।
व्यर्थ हो चुके हैं तरकश मे पड़े तीर,
आँखों में आ चुके हैं बेबस से पड़े नीर।
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