prabhakar joshi   (लफ्जों का सफर)
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Joined 9 July 2020


Joined 9 July 2020
10 AUG AT 20:16

खूबसूरती इंसान में नहीं बल्कि घटनाओं में होती है

जैसे किसी भूखे को रोटी मिलना
जैसे किसी रूठे को मोती मिलना
ठीक वैसे ही मुझे तुम्हारा मिलना ।।

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10 AUG AT 20:00

एक परिंदा अभी उड़ान में है
तीर हर शख्स की कमान में है

मारकर गिराना चाहती है दुनिया
उसकी भी बाजी जान में है.....

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17 MAY AT 22:29

जो मिले है ज़ख्म मुझे उन ज़ख्मों को पढ़ लूं क्या?
शायद दर्द कुछ कम है थोड़ा नमक रगड़ लूं क्या?
क्या कहूँ क्या नहीं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा
थोडा लिखकर, थोड़ा पढ़ कर, थोड़ा रोकर,थोड़ा हस लूं क्या?

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28 APR AT 4:31

इश्क़ करने की उम्र में तुमसे इजाजत तक ना मिली
अब कमाने खाने की उम्र में मैं कैसे इश्क़ कर लूँ??

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24 APR AT 0:00

आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता ,
लेकिन आतंकवादी सबका धर्म देखता है।

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8 APR AT 4:06

उन ढेर सारी बातों का क्या ! जो अनकही रह गई हो...शायद किसी डर से....कैसे कहें हम उन बातों को ...कैसे बताएं उन जज्बातों को ...क्या प्यार पद, पैसा, रंग, रूप , शरीर,उमर देखता है क्या ? मैंने तो सुना था प्यार ये सब नहीं देखता .... जहां प्यार होता है वहा इन सबके लिए कोई जगह नहीं होती....प्यार तो निस्वार्थ भाव से किया जाता है ....तो फिर मैं अपने दिल की बातें कैसे कह दूं उसे ? पता नही मैं कह भी पाऊंगा या नहीं !!

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3 APR AT 12:59

ये दुनिया किसी की सगी तो नहीं है
यकीनन उसे बंदगी तो नहीं है।

ये दुनिया के रंग, ये रंगों की दुनियां
मगर मुझमें अब तक रंगी तो नहीं है।

उसने मुझे इस तरह से निकाला
कि मुझमें भी वो अब कहीं तो नहीं है।

ये वादों के झूठे, ये झूठों के वादे
हो कुछ भी हो पर सही तो नहीं है।

कहने को इंसा, सहने को पत्थर
दुनियां में इंसा हमीं तो नहीं है।

चंदा की चाहत में अबला सा मन
चकोरों की उसमें कमी तो नहीं है।

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2 APR AT 12:44

ये दुनिया किसी की सगी तो नहीं है
यकीनन उसे बंदगी तो नहीं है

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29 MAR AT 21:46

रे मानव! अपनी तरक्की पर इतना इतराता क्या है ?
मैं तो बस जरा सी डोली हूं, तुझे नजर आता क्या है ?

अंग काटकर मेरे तूने कितना दर्द दिया
पूछ तो लेता पूछने में तेरा जाता क्या है ?

भूल गया तू कि तुझसे बढ़कर भी कौन है !
देख जरा देख, देखने में तेरा जाता क्या है ?

पहाड़ों को काटकर तूने इमारतें खड़ी कर दी
कभी सोचा मेरे बारे में, मेरा जाता क्या है ?

पानी तो पानी तूने हवा भी बेच दी।
बेचकर सब कुछ तेरा रह जाता क्या है ?

सुधार ले खुद को अभी भी वक्त पर,
सुधरने में आखिर तेरा जाता क्या है ?

और ये चंद इमारतें तरक्की नहीं हो सकती।
सोच कर देख फिर प्रलय आने में आता क्या है ?

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16 JUL 2024 AT 12:29

उन ढेर सारी बातों का क्या ! जो अनकही रह गई हो...शायद किसी डर से....कैसे कहें हम उन बातों को ...कैसे बताएं उन जज्बातों को ...क्या प्यार पद, पैसा, रंग, रूप , शरीर,उमर देखता है क्या ? मैंने तो सुना था प्यार ये सब नहीं देखता .... जहां प्यार होता है वहा इन सबके लिए कोई जगह नहीं होती....प्यार तो निस्वार्थ भाव से किया जाता है ....तो फिर मैं अपने दिल की बातें कैसे कह दूं उसे ? पता नही मैं कह भी पाऊंगा या नहीं !!

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