प्रांजल व्यास 'प्रसून'   (pranjal)
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मैं दर्द भी हूँ,
हम दर्द भी हूँ।
Joined 21 May 2018


मैं दर्द भी हूँ,
हम दर्द भी हूँ।
Joined 21 May 2018


मिलाया दूसरा नम्बर ही था,
पुरानी कॉल फिर से लग गई।

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संसार की समस्त भाषाओं में हिंदी का होना।
जैसे एक स्त्री के माथे पर बिंदी का होना।
...प्रांजल व्यास

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एक पहर तो दिन में कम से कम सन्देशा भिजवाओ,
पूछ रहे हैं हाल तुम्हारा मुझ से आकर लोग तुम्हारे।

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मैं जैसे ही छू लूँ मुझ पर रंग छोड़ दे,
मेरी आँखें ढूँढ रही हैं ऐसी तितली।

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मेरे जैसे कुछ आम लोग।
क्या पाते हैं एहतराम लोग।
सुना है बड़े चुपचाप रहते हैं,
मुहब्बत में नाकाम लोग।

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अभी तो रात बहुत बाकी है,
जागते रहना सोना मत।

भले अंधेरा डरा रहा है,दृश्य भयानक दिखा रहा है,
जिस जिस की आवाज दबी है,आँसू छुप छुप बहा रहा है।
लेकिन
लेकिन इतना याद रहे की स्वप्न अधूरे ढोना मत।
अभी तो रात बहुत बाकी है,जागते रहना सोना मत।

दौड़ने वाले हाँ गिरते हैं,गिर गिर कर ही फिर उठते हैं,
काटें हो या कंकड़ हो सब चलते हैं बस चलते हैं,
लेकिन
लेकिन पाँव थके हों या हो दर्द कोई भी रोना मत
अभी तो रात बहुत बाकी है,जागते रहना सोना मत।

कुछ आंखों पर जोर लगाओ,आसमान पर नजर गढाओ,
फिर भी उजियारा न हो तो ढूढो जुगनू दिया जलाओ
लेकिन
लेकिन डटकर रहना साथी,अड़ियल पन को खोना मत।
अभी तो रात बहुत बाकी है जागते रहना सोना मत।

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इश्क़ में पड़ने से पहले इश्क़ को थोड़ा पढ़ लेना,
'मजनू','राँझा' जो थे सो थे 'कुंदन' तक बे-मौत मर गया।

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पर ब्रह्म सत्यनारायण तुम हे कण कण वासी शिव शंभू।
हे तात जगत के नाथ जगत के और जगत के तुम बंधू।
हे नील कण्ठ हे नटराजे हे त्रिपुरारी हे रामेश्वर।
हे सोमनाथ हे महाकाल हे विश्वनाथ ओंकारेश्वर।

हे वामदेव हे शशिशेखर हे सामप्रिय हे ललाटाक्ष।
हे मृगपाणी हे वृषभारूढ हे त्रयीमूर्ति विरुणाक्ष।
सर्वज्ञ अनीश्वर यज्ञमय भस्मोद्धूलितविग्रह हवि।
हे वीरभद्र गणनाथ दुर्धुर्ष मृत्यंजय रुद्र भूतपति।
सोमसूर्याग्निलोचन सम पंचवक्त्र पूषदन्तभित्।
दक्षाध्वरहर हर अंनत अज अष्टमूर्ति भगनेत्रभिद्।
खोलो अब केशों को अपने उठा त्रिशूल करो तांडव।
हो जैसे एक तरफ कौरव हो जैसे एक तरफ पांडव।
निश्चल निस भंगुर कंकड़ भी हर प्रश्न बड़ा है खंडित का।
हर रक्त शून्य है धर्म ज्ञान से शोर है महिमामण्डित का।
अब अस्त्र उठाओ पशुपति या हमको दो तुम पाशुपतास्त्र।
ॐ शब्द का उच्चारण कर सिखलायेंगे धर्म शास्त्र।
कर्म सार सह न्याय दण्ड हम भोग रहे हैं दया करो।
त्राहि त्राहि,तुम्हरी रचना यह मिट ना जाये रोग हरो।

हर महाभयंकर विध्वंशी का आवश्यक है सर्वनाश।
हर हृदय हो रहा खण्ड खण्ड हर खण्ड खण्ड है मोहपाश।
हे अविनाशी कैलाशपति अब तो डमरू की गूंज करो।
अदृश्य विनाशी काल के मुख से निज सुत सारे दूर रखो।

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उम्र भर तुम रहो इस कदर सामने,
उम्र भर मैं तुम्हे देखता ही रहूँ।

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निगाहों से मेरी देखो क़ि कितनी खूबसूरत हो।
खुदा ने जो बनाई है अनोखी सी वो मूरत हो।
क़ि तुम मानो य ना मानो मगर ये तो हकीकत है।
तुम्ही मेरी मुहब्बत हो तुम्ही मेरी ज़रूरत हो।

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