प्रांजल प्रतीक   (प्रांजल 'प्रभव')
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Joined 3 June 2020


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Joined 3 June 2020

जीवन में प्रत्येक परिस्थिति, अस्थाई है।।
कुछ पीछे नहीं छूटता, केवल एक नया अध्याय जुड़ जाता है।।
स्मृतियां, अनुभव, और भावनाएं सदैव स्वच्छंद और जीवंत रहतीं हैं।।
और जीवंत अनुभूति ही, जीवन का सार्थक सार है।।

हमीं नवोदय हों....🌅

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अनंत प्रशांत है समक्ष, 'शांत-निर्विकार'
सिंधु के हृदय को ही ज्ञात-
उठ रही उमंग की ज्वार,
या वैराग्य है- भाव में व्याप्त,
विचलित है- गर्त में,
या हिलोर है अंतरमन में।।

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।। हिन्दी- हिंद की आशा है ।।

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सुंदर है जीवन,यादों से भरा,
खुशियों से शोभित,मंगल है,
संघर्षों से प्रेरित,संतुलित-संकल्पित
कदाचित,धूमिल है-विषम के तमस में।
कुसुम की सुगंधि,सम नहीं बगिया में,
पर्ण तरुवर में सब न समान,
दिनकर-प्रभा, वितरित भू-मंडल पर,
कहीं अधिक , कहीं तनिक।
किन्तु, प्रकृति- रमणीक,उत्तम,उत्तकृष्ट है,
प्राण भी यू ही मानुष के,
हर भाव जीवन में मिश्रित है,
भाव-विभोर होना निश्चित है।
नियति से कहीं, अपार दु:ख,
अनंत सुख है कहीं,
पर नियति कहां वश में?
चलता तो कर्म है विवेक से।
निर्धारित से जो,शिथिल रहे,
वह क्या ही जीवन जीता है?
पौरूष है कि अपने रण में कौन निरंतर लड़ता है!
भाग्य वीरों-विद्वानों का सदैव ही शत्रु है।
किन्तु संघर्षों से लड़ने वाले,सदैव साख जमाते हैं,
संसार के अमिट पटल पर
स्वंय के बूते जाते हैं।।

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मरना है इक अह्न, तो आज जीना छोड़ दे।।

बीतना है बसंत, चिड़िया चहकना छोड़ दे।
मधु-कर पराग भुला दे,कुसुम को मुर्छित होना है।

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ईर्ष्या किसे होती है?
एक तो उसे होती है, जो वंचित है।
और दूसरा जो, दूषित है।।

वंचित होना कर्म और भाग्य है,
दूषित होना मानसिकता है,दुर्बलता है।।।

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कु-हठ दुर्बल चरित्र का सूचक है,
ऐसा चरित्र सर्वस्व नाश कर देता है।

कुछ नही बचता, केवल इस हठ के,
ना ही कभी पश्चाताप उत्पन्न होने देता है।।

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जो स्वयं अकर्मण्य होते हैं,
वे दूसरों से भी वही अपेक्षा करते हैं।
और उनके लिए दूसरों के काम के लिए कोई सम्मान नहीं होता।।

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दोष न मेरा रहा,
दोषी मैं बनता रहा।

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" राम मर्यादा पुरूषोत्तम हैं, राम अनुकरणीय हैं, राम भारत की आत्मा हैं, राम धर्म की पराकाष्ठा हैं,राम दुर्बल के संरक्षक हैं, राम ही सच्चे प्रीत हैं, राम ही स्वामी हैं,राम ही अनुराग हैं,राम ही जीवन के पराग हैं।।
।।जय श्री राम।।
।। सिया राम,सिया राम।।

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