जो लोहे को भी, आग में तपा सोना बना दे,
वो शिक्षक हैं, आने वाले कल को भी आज बना दें।
माता से जन्म मिला, शिक्षक जीवन का सार बताएँ,
क्या सही क्या ग़लत, जीवन का वो पाठ पढ़ाएँ।-
नवीन, नूतन, नयी-नवेली सी शाम मधुमयी,
हर्षित, हयात, हृदय की नयी कहानी।
कुछ अनकहे एहसासों की ख़ामोश ज़ुबानी,
अजनबी, रू-शनासी सी सुनाई देती प्रतिध्वनि।-
गुलों को गुलशन में खिला रहने दिया जाए,
बस छु लो हाथों से और नफ़स में महसूस किया जाए।
मिज़ाज नहीं मेरा तहरीर से इश्क़, कलम से बग़ज़,
वफ़ा ऐसी की ज़हन में अक्श, आँखों से छु लिया जाए।-
एक परब अनदान के!!
बात बतावँव तुमन ल एक शान के।
छेरछेरा परब अनदान के।
दान-पुन ले समाय संस्कृति,
गँवई के आतमा खेती अउ किसान के।
जाँगर टोर मिहनत के सोनहा फर के।
पुस पुन्नी अउ एकमई सुनता के छेवर के।
पर भाव ल छोड़ समभाव के निसानी,
किसानी के चिन्हारी,जम्मो के कल्यान के।
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बात बतावँव तुमन ल एक शान के।
छेरछेरा परब अनदान के।
दान-पुन ले समाय संस्कृति,
गँवई के आतमा खेती अउ किसान के।
जाँगर टोर मिहनत के सोनहा फर के।
पुस पुन्नी अउ एकमई सुनता के छेवर के।
पर भाव ल छोड़ समभाव के निसानी,
किसानी के चिन्हारी,जम्मो के कल्यान के।
साकम्भरी मईयाँ के परेम, परताप के।
अकाल अउ अन्न-जल, साग के बरसात के।
जम्मो के जिनगी म फइले पुन्नी कस अंजोरी,
कथा हवय भुँईयाँ अउ मनखे के ताना-बाना के।
गुरतुर गीत सुआ, करमा, ददरिया के।
उछाह डंडा-पचरंगा लइका अउ सियनहा के।
धान के कटोरा, कोसल के चिन्हारी,
दानसीलता राजा कल्यान साय अउ फुलकैना के।
कथा दान लेवइया-देवइया दुनो के कल्यान के।
तिहार मया अउ सतरंगी उछाह के।
कोठी म मिंजा के माढे, बियारा के खरही,
उमंग लइका, जवान, सियान के।
बानी म होय मीठ बोबरा, सुहारीं, अइरसा, तसमई के।
एक दूसर ले मिलव मया अउ अपनभाव ले।
फलय-फूलय अइसने सुनता के डोरी,
झन भूलव ए परब अनदान के!!!-
अजी! उन्हें शिकायत हमसे इस बात की है कि,
देख उन्हें हम मुस्कराते बहुत हैं,
अब कौन समझाए उन्हें कि,
एहसास हमारे संभाले संभलते नहीं हैं।-
अक्सर तेरी यादों में खोए से रहते हैं,
दुआओं में अक्सर तुझे मांगा करते हैं..
कोई मंदिर, मस्जिद न गिरजाघर छोड़ा,
कहीं मत्था टेकना, तो कहीं मन्नत का धागा बांधा करते हैं..
कभी दिन का ख्याल, रातों का तुम्हें सहारा पाते हैं,
कि ज़हन में हरपल तेरा ही बसेरा पाते हैं..
तेरे इश्क़ में हम पागल से फिरते हैं...!!!
कि ऐतबार इतना है तुम पर,
तेरी हर बात सर आंखों पर रखते हैं..
इक लफ्ज़ न पूछा कभी,
बेवजह हर बात मान जाते हैं..
यूं तो ऐसे एहसास जागे न थे कभी,
कि तेरा हर पैगाम छुपकर पढ़ते हैं..
बेवजह बस यूं ही मुस्कुराते रहते हैं,
तेरे इश्क़ में हम पागल से फिरते हैं...!!!
दो पल सुकून की गुफ्तगू न सही,
हम आंखों से दिल का हाल पढ़ा करते हैं..
रुबरू न हो पाए कभी,
हम यादों में तेरी घंटों गुज़ार देते हैं..
कि अक्सर खुद से तेरा नाम जोड़ा करते हैं,
हथेली पर मेहंदी से तेरा नाम लिखा करते हैं..
मर के भी छूटेगा ना साथ सनम,
हम दिल से यही फरियाद करते हैं...!!!!!-
कि अब पहले ही वह बातें नहीं हैं,
हंसती मुस्कुराती वह रातें नहीं हैं।
जिंदगी में मोड़ कुछ यूँ आया है,
कुछ किरचें आज भी हैं,
पहले से बाकी हम नहीं हैं!-
क्या नारी होना अभिशाप नहीं?
क्यों उसकी कोई पहचान नहीं?
भाग्य में उसके विषण्ण की बिसात नहीं?
नयन में अश्रु मुख पर स्मित,
क्या नारी होना अभिशाप नहीं?
न अपनी न पराई किसी की,
क्यों उसका कोई घर-बार नहीं?
रहती है सबके समक्ष, स्वयं से विलुप्त कहीं,
क्या नारी होना अभिशाप नहीं?
अपनों से ही छली जाती,
उसके जीवन में खुशियों की बरसात नहीं,
वह तो है सबकी अपनी,
पर अपनों के वह पास नहीं,
क्या नारी होना अभिशाप नहीं?
स्वयं का आकाश, उसकी कोई जात नहीं,
आज़ाद है पर आज़ादी की बात नहीं,
ज़र्द चेहरा, सूनी आँखें, खुद से गुमनाम कहीं,
क्या नारी होना अभिशाप नहीं?-
अर्ज़ किया है,
ज़रा गौर फरमाइएगा
हमसे इश्क़ मोहब्बत की गुफ्तगू न किजिए, हमें तन्हां ही रहने दिजिए,,
कि मशहूर होने की ख्वाहिश नहीं, हम अनजान हैं अनजान ही रहने दिजिए...-