बहुत गंभीर लोग
सहजता से अपना लेते है
बड़े से बड़ा, दुःख
ये,अच्छे से अच्छे
बुरे वक़्त को भी
दे मारते है तमाचा
अपनी शांत शीतल
मुस्कुराहट से....
वो जाते हुए लोगो को देते है
सरल रस्ता ताकि लौटने का पता
चाह कर भी न मिले
जी ये अति गंभीर लोग
समझ के है परे
और है बनावटी दुनिया से,
कोषों दूर।-
यहाँ लिखित सभी रचनाये मेरी है..
व कल्पनाओं से ओत - प्रोत है
इसलिये मात्र... read more
कब तक मै पहनूँ अपने दाम के "झुमके"
जी मुझे चाहिए दिए तेरे नाम के "झूमके"...-
मेरी तरह तुम भी रहा करो "इश्क़" में ज़रा पागल,
कौन जाने ये "दीवानगी" तुम्हें हीरा-नायाब कर दे..!!-
मै तुझे समर्पित तो हूँ मगर,
क्या तुम भी कर सकोगे परवाह
मेरी भावनाओं का
या फ़िर बेपरवाही से
करोगे "निर्वहन"
समाज के उस कर्तव्य का...
जो जितना
पूजनीय व्यक्तितव होगा
हम उसे करेंगे और मजबुर
व देंगे कटु- व्यंगवाण
या फ़िर नारा दोगे
अच्छा होना भयावह है
जहाँ अंत में मै करूंगी पश्चाताप,
"घोर - पश्चाताप..."-
सच्चे "ह्रदय" से
निकली
आह..!!
करती ब्रम्हाण्ड में
कंपन....
तुम भाग कर
कर्म -औ- दुर्भाग्य से
जाओगे
फ़िर
कहाँ...!!-
ज़िक्र हुआ जा रहा है "किताबों" में देखों ,
मानों बिछडे हों हम पिछ्ले जन्म में कही...-
मेरे "ह्रदय" में तुम्हारे प्रति अथाह प्रेम,
लेकिन क्या कभी "जता" सकूंगी...??
या फ़िर मेरे साथ ये हो जायेगी
पंच-तत्व में विलीन...!!
(कृपया अनुशीर्षक में पढें)-
रहो "स्त्री" इतनी "प्यारी" तुम,
की उसे माथा चूमना पड़ जाये..!!— % &बनो "पुरुष" इतने "सहज" तुम,
वो बेखौफ़ तुझसे सिमट जाये..!!— % &-
धड़कन उन्हें पुकारे जी,
कैसे कहे, सुनाये जी..
अब तो चैन - बैचैन है,
जी इतना "घबराये" जी..
पास रहो तो शब्द नही,
यूँ अकेले "बौराये" जी..
सब जाने वो राधा-रानी,
जान - जान सताये जी..
है मनुहार कान्हा जिनसे,
खत, नटखट पठाये जी..-