अंत ही आरंभ है
अंत ही आरंभ है, ये भावना का कुंभ है।
जो रह गया सो रह गया, जो खो गया वह भूल जा।।
प्रेम में है लत कोई, विरोधियों का झुंड है।
जो दिख रहा सच नहीं, चक्षुओं की धूल है।।
तू थम नहीं तू डर नहीं, ये रास्ता प्रचंड है।
तू बंजरो में खिल उठे, उस बागबां का फूल है।।
निश्चित है तेरी जीत भी, जब हौसला अखंड है
जो चुभ रहा है नेत्रों में, वो उन्नति का शूल है
जब जहां तू डूबा था, वो ज्ञान का ही कुंड है
सूत की फिकर है क्या, जो मोल है वो मूल है
अंत ही आरंभ है-
25 FEB 2019 AT 2:16