ठगता है आइना महज मेरा चेहरा दिखाकर
घर में मैं अकेला तो नहीं रहता-
Still Discovering my passion
शब चले आते हो यहाँ तफ़रीह के लिए
तुम भी महज एक मुसलसल ख्याल हो मेरा-
स्कूल का बडा सा हाल शिक्षक दिवस के लिए सजाया गया था |उस समय देवदास फ़िल्म का गाना डोला रे डोला काफ़ी चल रहा था | छोटी कक्षा से कुछ बच्चे भी इसी गाने पर डाँस करने वाले थे| स्टेज पर जब नाम बुलाए गए एक नाम नहीं था| तुम्हे आ नहीं रहा होगा शायद इसलिए स्टेज पर बुलाकर बेज़्ज़ती थोडी करवानी थी|पर अब क्या सब तो हँसगे मुझ पर |
बहुत सारे लोग आए हैं कवि समारोह के लिए हाथ में कागज़ लिए एक लडकी अपनी बारी का इंतज़ार कर रही है|हर स्टेज़ पर आए कवि को सुनना चाहती है पर साथ ही कागज़ पर जो उसने सारी रात जागकर लिखा है बार बार देख रही है| दिल जोर से धडक रहा है| एक बार आयोज़क से पूछ लूँ अपनी बारी कब है | पिछली बार भी तुम इसी भ्रम में थी कि तुम्हारा नाम लिखा गया है| मैेडम हमारॆ पास बहुत नाम आए हैं इसलिए आपका नाम नहीं लिखा| क्या ये अब बता रहे हो मुझे?अचानक ठन्ड बहुत बड गयी |कुछ याद आया?कल भी तुम्हे कोई दॆखना नहीं चाहता था आज भी कोइ तुम्हे सुनना नहीं चाहता| भीड ने कुछ सुना तो नहीं ना |
उस दिन जिस बच्चे का आत्मविशवास टूटा उसने फ़िर कभी डाँस नहीं किया |लेकिन उस लडकी ने लिखना नहीं छोडा है चाहे कोई उसे सुनना चाहॆ या नहीं |
बहुत मुशकिल से मनाया है उस लडकी को ये कहानी सुनाने के लिए|-
शब भर जलता है होने को किसी के काबिल
तुम समझते हो शौक से जगता है जुगनू नादान-
मुमकिन है कि उसकी मेरी मुलाकात हो जाए कभी
मैं शब हूँ और उसे ख्वाहिश है चाँद की-
मिलते नहीं मुझसे मेरे घर में आकर
सब रोज़ फ़कत पता पूछते हैं
लगते नहीं गले मुझसे लिहाफ़ में आकर
शब दूर से तबीयत पूछते हैं
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बडा तकल्लु.फ़ किया जो शब ने आज अन्धेरा किया
मुझी को उसने रात-ब-रात जगाया
मुझी को शौक से आज जुगनू किया
हुए तनहा कुछ कम ज़्यादा नकारा इशक ने आज़ किया
मुझी को उसने रात-ब-रात बुलाया
मुझी को शोैक से आज़ रुसवा किया
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