तू न बहुत खास है मेरे लिए,
बेशक कई बार मैने तुझे चुना न होगा,
पर तेरा होना ही न सुकूं देता है,
जैसे इस धूप भरी जिंदगी में कोई छाया हो तू,
बेशक photos नहीं लेते हम जब साथ होते है,
पर मेरे दिल के हर कोने में तू मेरी जान है,
तू न वो है जो शब्दो से कहीं ज्यादा है l-
मन के भीतर मैं गोते लगता गया,
जितना डूबा मैं खुद को पाता गया l
हाँ सुना था कि तू मुझमे ही है,
हौले-हौले मैं खुद में समता गया l
होगी इतनी सुहानी ये दुनिया कभी,
मन के रंगों से दुनिया सजाता गया l
डूबने की कला तो आती न थी,
सासों की माला से सीढी़ बनाता गया,
जितना डूबा में खुद को पता गया l
कहीं तितली कहीं थे परिंदे मगर,
मैं तो सरिता में चित्र बनता गया l
है अजब ये मजा जो डूबने में है,
मैं रह-रह के जीवन में आता गया l
मौन का है ये खेल, मौन से ही खेल,
इस सागर में ज्योति से सा जाता गया.
जितना डूबा मैं खुद को पता गया l
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खोज मे निकलती हूँ किसी अपने की,
और अटक जाती हूँ किताबों पर,
वो कहती हैं मुझसे बार - बार,
तू समझ तेरी मंजिल बस यही है l-
कोई नही साथ तुम्हारे चलना तुमको तन्हा है,
जल रहा है तन मन सब, जलना तुमको तन्हा है,
समझ न पाई गर इशारे तुम अब भी किस्मत के,
तन्हाई की राह में बढ़ना तुमको तन्हा है l
आस न कर अब साथी की, ये दुनियाँ ही मृगतृष्णा है,
खो गया है प्यार जो तेरा, लड़ना तुमको तन्हा है l
अब रो कर क्या कर लेगी, ये दुनियाँ दोष लगायेगी,
दुनियाँ के ताने देख कर, क्या तू सुख से रह पायेगी,
अब रख उद्देश्य एक है, जो है अब सब कृष्णा है
कोई नही साथ तुम्हारे चलना तुमको तन्हा है l-
मैं वृंदावन आऊँ और रिमझिम बारिश हो जाए,
समझ जाऊंगी की तुम्हे मुझसे उतना ही प्रेम है जितना मुझे तुमसे....
कान्हा-
गर मिले तुम्हे फुर्सत किसी रोज तो कहना,
हाल ए दिल बयां करना है हमे,
करनी है हज़ारों गुफ्तगू तुमसे,
बाहों में तुम्हारी रहना है हमें।
कहना है तुमसे कि कैसे,
जर्रा-जर्रा सूना है तुम बिन,
तुम्हारे कदमो की आहटों से,
ये गुलशन गुलजार करना है हमें।
गर मिले तुम्हे फुर्सत किसी रोज तो कहना,
हाल ए दिल बयां करना है हमे।-
हे कान्हा
काश एक रोज हम एक लंबी रात के बाद आँखें खोलें,
और अपने सिरहाने में तुम्हें पाएं
काश-
इस दुनियाँ की भीड़ से ले चलो न कहीं दूर,
दूर इतना की मुझे दूर दूर तक कोई न दिखे,
तुम्हारे अलावा
इस दिखावे की दुनियाँ से ले चलो न अपने संग,
मुझे हर पल मर मर के न जीना पड़े,
तुम तो सब जानते हो ना मेरे मन की पीड़ा,
तो ले जाने में इतनी देर क्यों,
गर तुम आओगे न मेरे सामने और पूछोगे कि,
चलेगी साथ पूनम
सच कहूँ तो मैं एक पल में तुम संग चलने,
तैयार हो जाऊंगी,
हाँ शर्त ये होगी कि तुम्हे खुद आना होगा,
मुझे लेने,
और इस दुनियाँ की भीड़ से दूर ले जाने
तुम आओगे न कान्हा? ???-
हजार गम सीने में छुपाए बैठे हैं वो,
आँखो से गम छलक न जाए ,
इसलिए चस्मा लगाए बैठे हैं वोl-
कभी जिम्मेदारी तो कभी समाज,
उस सोच को सोच ही रहने देता हैl
बहुत बार मन मार के रह जाते है हम,
हर पल जो सोचे वो होने नहीं देता l
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