पूजा करती हूँ, विशेष आत्मा की जो प्रभु हैं, ईश्वर नहीं वो कुछ और हैं , मैं उनकी जीवन संगिनी हूँ मेरी खोज उनका आशीर्वाद चाहिए ,उनसे मुझे असीम सुख, आशायें पूर्ण होती हैं।
उनके प्यार की प्राप्ति, परमानंद है प्रेम, प्यार है वो, उनका प्यार मेरी आत्मा से कभी दूर नहीं, औरत हूँ उद्देश्य प्रसन्नता प्राप्त करना कर्म है ,भीतर उस आनंद को मैं निरंतर पैदा करती हूँ।
जो भी है चिरस्थायी नहीं है, सांसें, खुबसूरती तेरी अनुभूति मुझे अस्न्तुष्ट, नीरस न होने दे तेरे मन के आनंद भंडार को पंसद करती हूँ पर चिंता में हूँ इस आनंद मैं, कहीं गलत तो नहीं हूँ।
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