दिन भर काम करके भरता है पेट वह अपनों के, कभी भूखा रहा बच्चों के लिए, कभी आधी रोटी से गुज़ारा करता है, कितना मजबूर होगा वह पिता, जो दिन-रात मेहनत करके भी नहीं थकता है।
कलम कहु या कहु सखी है मेरी , मेरे जज़्बातो का नाम है लेखनी,, कहती कुछ छिपाती है लेखनी, भावों का समावेश है लेखनी,, दर्द कभी मन की शांति है लेखनी, जो लिख सकें अहसास वो साथ है लेखनी।
सुहाने दिन वही होंगे, हँसी राते वही होंगी, एक वक़्त वो होगा जब न किसी पर आश्रित होंगे, रात के आसमान पर चांद जब हमारा होगा , सूर्य के प्रकाश में जब जल गये गम हमारे होंगे।
आश्चर्य की बात है ! जो दिल में वो नज़र नही आते हैं, जो नज़र में हैं वो समझ नही आते हैं,, कैसे समझें "किस पर एतबार करें ? यूँ तो कहते सब हैं "तुमसें प्रेम करते हैं "।