आबाद हुए तो क्या हुए ,ये बर्बाद जवानी क्या है?
जो चले गए वो अपने थे,ये नए पुराने क्या हे?
ये सुख दुख के मेले में ,ये खौफ पुराना क्या है?
ये रंगमंच का खेला हे,किरदार तुम्हारा क्या है?
लो गिर गया पर्दा अब बताओ वजूद तुम्हारा क्या हे?-
Try to enlish my hidden potential
Go down and just hit like button
भावनाओं... read more
जो शब्द वक्त रहते बयां नहीं हो पाते
उनकी खुशबू धीमी होजाती हे।
फिर उनका होना या न होने का कोई अर्थ नहीं होता।-
बड़े सलीके से संवारकर रखा था अंधेरे को
तुमने मशाल जला का किए कराए पर पानी फेरदिया।-
यह धरती का अंधेरा
यह दमकता सवेरा
यह सब एक भ्रम हे।
ये टिमटिमाते तारे
ये सागर में उठती लहरें
ये सब एक भ्रम है।
ये खुशी ,जज्बात, आंसू
मेरा वजूद सब एक भ्रम है।
-
मुझसे प्रेम करना इतना कठिन नहीं था,ये तो बदलते दौर के बदलते लोग हे
जनाब!
स्त्रियों को दोष देने का शौक इनका पुराना हे।-
समाज को हमेशा कविताओं में चाँद सा चेहरा, घने बाल, चूड़ियां, बिंदी और फूलों में सजी महिलाएं ही पसंद आई हैं।
कभी किसी मर्द को हिम्मती, संघर्ष करती महिला पसंद नहीं आई। और अगर कभी आई भी, तो वो समाज को रास नहीं आई।
मैंने कभी ऐसी कोई प्रेम कविता नहीं पढ़ी जो किसी मर्द ने लिखी हो,
जिसमें उस औरत का जिक्र हो जिसका चेहरा धूल से भरा हो, जिसका रंग ढलती धूप सा हो,
जो कभी अपने लिए, तो कभी समाज के खिलाफ खड़ी होकर लड़े।
हक के लिए लड़ने वाली औरत का नाम शायद कभी प्रेम में आया ही नहीं।-
समाज को हमेशा कविताओं में पसंद आया चांद सा चेहरा,लंबे घने बाल,चूड़ियां बिंदी और फूलों से खेलती महिलाएं।
कभी किसी पुरुष को साहस दिखाती महिला पसंद ही नहीं आई।कभी पसंद आई तो समाज को रास नहीं आई।
मैने नहीं पढ़ी कोई प्रेम कविता जो पुरुष द्वारा लिखी गई , जिसमें जिक्र हो चेहरे पे लगी धूल का,धूप से ढलते रंग का,कभी खुद से और कभी समाज से लड़ती महिला का।
ये दर्शाता हे हक के लिए लड़ती महिलाएं के हिस्से प्रेम कभी आया ही नहीं।-