मुझसे
तुम कल भी वैसे थे
और आज भी
हर किसी को समझ कर भी
क्यों नहीं बदल पाते खुद को
हर कोई चेहरे पर चेहरा
लगाए घूमता है
और तुम हो कि ,
अपनी सादगी में मरे जाते हो-
हर रचना को मेरी जाती जिंदगी से न जोड़े।
मै एक लेखक हूँ... read more
उम्र है ,समझदारी की
फिर भी नासमझी
लगता है ,प्रेम का रस चख लिया है-
न जाने कितने भूले बिसरे रिश्तो को समेटता है व्हाट्सएप
अब चिट्ठियों के लिए आंखें तरसा नहीं करती-
वह ना दिखे तो धड़कन रूकती है
वो दिख जाए तो कलम चलती है,
भीतर ही भीतर सांस गुनगुनाती है,
उसकी खुशबू से हवाएं मदहोश हो जाती हैं
इतना भी ना लो, मेरे सब्र का इम्तिहान
कभी तो दिखा दो खुदा,मेरी नेकियों का ईनाम-
शब भर जगा
"शब्बा खैर "के लिए
तुम आए नहीं, न जाने
किस झुरमुट में छुप गए-
दिमाग की उथल-पुथल
उसे तो बस लगता है ,
बह जाओ किसी नदिया के आवेग की तरह
चाहे राह में कितने ही पत्थर क्यों ना आए
तुम बहती रहो अपने हमदम की दिशा में
जो सुनते हैं दिमाग की वो रह जाते हैं ,ठहर
बाकी मासूम खाते रहते हैं पत्थर ...जिंदगी भर-
अब शब्द ही बन गये, हैं श्वास
जबसे ठन्डी पढ़ी,मिलन की आंच
यही तृप्ति है, यही आस, यही विश्वास
कभी न टूटेगी, तेरी मेरी कलम की प्यास-
जब हर मुलाकात पर दूसरी मुलाकात का इंतजार हो
तो वह आस नहीं पिछले जन्म की प्यास होगी-
प्रश्नपत्री सी है जिंदगी
हजारों उलझे सवाल
एक का हल निकालूं
कल उभरे नए सवाल
जो मिला क्या यही नियति थी
जो नहीं मिला क्या वह बेहतर था....
ऊपर बैठा रब हंसे
रच कर माया जाल
यूं ही भागती रहे जिंदगी
मेरे हजारों अनुत्तरित सवाल...-
किसी एक को अपना हमराज बना लीजिए
जो तुम्हारी उदासी को, अपना गम मानता हो-