एक घरौंदा माटी का, मेघ से कह दो बरसे ना
दाना दाना ये माटी का, बूंदों से बह जाए ना
एक कली कोशा सी, शया से कह दो चमके ना
रोम रोम ये कोशा सा, बिजुरी से जल जाए ना
भाव मृदु सा मन का, जिव्हा से कह दो ठहरो ना
नवप्रसूत ये चाह चित्त का, शब्दों से मर जाए ना
नूतन भ्रम छल नैन का, हिया से कह दो तरसे ना
यह उषा निशा से जीवन का, हर्ष इति हो जाए ना
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