❤️एक मुलाकात ऐसी भी❤️
"हम परिंदो के मकानों में रहने वाले इस हल्के से झोंके से कही ढेह ना जाये,
वो पत्थर की हवेली के बादशाह इस वीरानी संग नदिओं में कही बेह ना जाये,
उनके गलियों से निकलने का कई बार सोचा इस बार ये कदम कहीं रुक न जाए,
सोचा आशिक सच्चा होगा तभी फ़िक्र करता है, मेरे लिए काश वो इस जनम कही झुक ना जाये,
एक काँधे का सहारा है तेरा साथिया वर्ना विरानो में तो काँधे कईओ के मिल जाए,
इस उजड़ी सी जिंदगी को सवारा तूने वर्ना पतझड़ में फूल कही न खिल पाये ❤️
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