बाबुल
बाबा की दुलारी
अब पिया के घर की रानी
आँगन की चिड़िया
आशियाना कही और बसा ली
हर बात पे उलझने वाली
अब रिश्तों को सुलझाने लगी
खुद बेपरवाह रहने वाली
अब हर किसी की परवाह करने लगी
माँ की लाडली बुधू
अब सास की चालाक बहु कहलाने लगी
हर बात पे रूठने वाली
अब हर बात पे मुस्कुराने लगी
बड़ी जो हो गई
अब कितना बदलने लगी
बाबा की दुलारी
अब पिया की घर के रानी हो गयी
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हर रोज का
टूटना- जुड़ना
फिर जुड़ के
टूट जाना
आज सोचा
ऐसा क्या पाना
की
खुद को भी खो जाना-
मौसम अच्छा है,तन्हाई सा आलम है
दूरियां ही दूरियां,बेरुआई सा आलम है
बरसात का बादल अवारा है
जानें किस घर के ऊपर इसे बरसना है
गम -खुशी दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू है
फिर आदमी क्यों यू बेगाना है
कुछ दूर तक तो साथ चलो
फिर बाद में बहाना ही बहाना है
जो मिल गया वो इनकार है
जो न मिला दुनिया उसी का दीवाना है
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रब तू कैसे सो रहा ?
इंसान तेरा रो रहा!
तेरा बनाया जग !
बिखर रहा है ,
सांसो का खेल।
हर घर को तोड़ रहा ।
रब तू कैसे सो रहा ?
इंसान तेरा रो रहा !
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रूठा तू जग भी छुटा,
खुदा का वास्ता लौट आ,
यू ही सफर के हमराही ,
मंजिल से न लौट आ।
एक जहां थी खूबसूरत सी ,
जिसे ख्वाबों से सजाया था हमने,
यू न हिज्र के साये में धकेल जा।
खुदा का वास्ता लौट आ।
जरा जरा सी बात पे यू न तोड़ जा ,
है उदास आँखे मेरी,उदास से दिन भी,
उदास हर रातें, उदास सा चेहरा,
अब आके आइनों को हशां जा।
खुदा का वास्ता लौट आ,
वर्षों से हम यू ही जी रहे एक आस में है ,
आके मेरा यकीन दिला जा।
यू दो दिनों की यारी नहीं हमारी।
सात जन्मों का है ये बन्धन।
तुम्हारे मुँह से मीठी बात ,
सुनने के आदी ये दिल।
खुदा का वास्ता लौट आ।
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तुम्हारे आने से मेरे ज़िन्दगी में खुशियाँ आई,
तुमसे थोड़ी सी भी दुरी मुझे रास न आई,
हर जन्म में मिले बस तेरा ही साथ मुझे,
आज ख़ुदा से यही फरियाद मैं कर आई।-
कुछ लिख कर, मिटाने का मन करता है !
कुछ लम्हें भूल, जाने का मन करता है !
कुछ ख्वाब, को छोड़ने का मन करता है !
कुछ टूटे हिस्सों को जोड़ने का मन करता है !
कुछ खुद में सिमटने का मन करता है !
कुछ अब, खुद का होने को मन करता है !
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ज़िन्दगी है क्या
कभी हँसना
कभी रोना
सासों का मेल भी
प्यार का खेल भी
धीमी सी भी
रोज रफ्तार से गुजरी
फिर बिखरी
संभली कुछ
यू ही कुछ नखरीली
बेवफा सी भी
क्यों ऐसी है
ज़िन्दगी
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