तुम क़ैद हो तस्वीरों में कहीं
तुम दृश्य हो अतीत का कोई
तुम न हो तो सफर कठिन लगता है,
तुम होते हो सामने तो हर चीज सरल लगती है।
तुम रहो तो लगता है मैं हर जंग जीत जाऊं।
नहीं लड़ सकती तुम्हारे लिए
जानते हो तुम,
तुम जताते हो प्रेम अपना खुल कर,
मैं दब जाती हूं कहीं,
कभी समाज के तले,
कभी परिवार के तले,
और कभी,
अपने सपनो तले।
तुम, तुम्हारा प्रेम, तुम्हारी बातें,
सब कुछ बसा है मेरे हृदय में।
तुम जैसे शरद ऋतु, और
तुम्हारी बातें शरद ऋतु में निकली धूप जैसी।
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