Pooja Singh   (Pooja Singh)
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Joined 9 November 2020


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Joined 9 November 2020
28 AUG 2022 AT 20:57

तेरे दिल के सुरज को
मेरे आंचल में ढल जाने दे,
आज सुकून से जी ले,
कल को कल ही आने दे।

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13 NOV 2021 AT 13:21

मेरी नन्ही परी,
किलकारियों से अपनी तुम
खिलखिलादो मेरा अँगना।
नन्हें क़दमों से चलकर
रौशन कर दो मेरी ज़मीन।
माँ को यूं न सताओ अब,
माँ कहकर तो बुलाओ अब।
खामोशी को तोड़ दो,
रूठना तुम छोड़ दो।
अब आ भी जाओ मेरे पास
मेरी नन्ही परी की है मुझे आस।

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11 NOV 2021 AT 21:31

जहां मोहब्बत बेहद सस्ती थी।
रास में डूबी हर हस्ती थी।
नस नस में मटरगश्ती थी

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30 SEP 2021 AT 20:22

सांसों का आना जाना, दिल का धड़के जाना,
लक्ष्य के बिना जिंदा होना, जीना हो सकता है क्या?

चलते जाना कहीं भी, बिना किसी मंज़िल के,
दिशाहीन व्यक्ति कभी कहीं पहुंच सकता है क्या?

रातों में रोशनी ढूंढना, सुबह को अंधेरा,
हर दम नुख़्स ढुंढनेवाला, खुश हो सकता है क्या?

सर्दी में गर्माहट, गर्मी में ठंडक की चाहत,
मेहनत से बचनेवाला, सफल हो सकता है क्या?

हर बात पे ना कहना, हर काम से जी चुराना,
कुछ नया ना सीखनेवाला, बेहतर हो सकता है क्या?

लोग क्या सोचेंगे, जाने क्या बातें बनाएंगे,
आलोचना से डरनेवाला, आसमान छू सकता है क्या?

खुदको रोकने वाला, खुदकी निंदा करनेवाला,
सफलता के राह पर कभी अग्रसर हो सकता है क्या?

बदल दो तुम बुरी आदतें, लगन से करो हर काम,
बिना खुद को दाबे, कोयला हीरा बन सकता है क्या?

ख़्वाबों की मशाल जलाए, जो तापे खुद को मेहनत से,
उस शख़्स को उड़ान भरने से, कोई रोक सकता है क्या?



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21 SEP 2021 AT 19:59

कोई पक्षपात नहीं होता।
जाती धर्म के आधार पर,
वहां सम्राट नहीं होता।
प्यार अब भी वहां मासूम है,
दिल को आघात नहीं होता।
ख़्वाहिशों की ओट में
कोई अज्ञात नहीं होता।
ज़रा धीरे चलता है समय,
वहां कुछ अकस्मात् नहीं होता।
हर शख़्स का अस्तित्व है
वहां कोई गुमनाम नहीं होता।

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21 SEP 2021 AT 19:15

Where there is success,
there is perseverance.

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21 SEP 2021 AT 12:39

मेरे पांव में बेड़ियां मैंने खुद डाली है,
मैंने ही खुद को नज़रबंद भी किया है।
किसी और से क्यों मांगूं मैं आज़ादी
लोगों की आशाओं के बोझ से
मैंने ही तो खुद को बोझिल किया है।

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20 SEP 2021 AT 2:00

अब नहीं है किसी पे हमें ऐतबार,
दिल को नहीं है किसीका इंतज़ार।
लुटा चुके हम अपनी मोहब्बत सरेआम,
अब नहीं है किसी के इश्क़ की दरकार।

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20 SEP 2021 AT 1:45

कोई खुद ही अपना संसार उजाड़े तो क्या कहना,
कोई दिल से यूं ही तुम्हें निकाले तो क्या कहना।
नहीं मंज़ूर किन्हीं आंखों से अब गंगा को बहना,
कोई खुद ही बंजर होना चाहे तो क्या कहना।

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20 SEP 2021 AT 1:25

चाहते तो मुझे सब हैं,
लेकिन अपनाता कोई नहीं।
चरित्र मेरा सबको लुभाए,
फिर भी सब दूर हो जाएं।
इस दिखावे की दुनिया में
वो ढूंढ रहे हैं गुलाब,
क्या आकेंगे कीमत मेरी,
हूं क्या मैं, बस एक बनफूल
बस एक बनफूल।

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