Pooja Shrivastav  
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Joined 13 June 2020


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Joined 13 June 2020
22 APR AT 21:44

ये कसमें ये वादे चाहे बंधन भी तोड़ दे
इन राहों में चल पाना अब मुमकिन न हो गर,
सिलसिले को इस;खूबसूरत मोड़ देके छोड़ दे।

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4 MAR AT 23:55

तूफानों से उबरी हूँ, छोटा-मोटा हवा का झौंका कैसे मुझे बहा लेगा?
मैं निश्छल साफ़ सुथरी हूँ कोई हो न हो मेरा रब हैं न वो ही मुझे संभालेगा।

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3 MAR AT 23:40

मैंने कहां कोई बेशकीमती उपहार मांगा था?
सिर्फ़ उसकी बाहों का गले में एक हार मांगा था,
काश!वो तड़प वो झिड़क दूर रहने पर उसे भी होती,
ज़रा सा ही तो था कहां कुछ ज़्यादा मैंने मेरे यार मांगा था?

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3 MAR AT 22:51

घर से दूर बहुत दूर एक नया घर बना रही हूँ,
मैं ख़्वाबों से हकीक़त के शहर जा रही हूँ।

नींद तो कुछ रोज़ पहले ही उड़ सी गई थी,
बाक़ी सब वही था अब बस मैं ही नई थी,
बीती ज़िंदगी की सुखद यादों में खोकर,
एक-दो कदम चल ठहर जा रही हूँ,
घर से दूर बहुत दूर एक नया घर बना रही हूँ,
मैं ख़्वाबों से हकीक़त के शहर जा रही हूँ।

अरसा हुआ मेरा नाम उस ममता से किसी ने पुकारा नहीं है,
मुझे लगी नज़रों को किसी ने फिर काजल से अपने उतारा नहीं है,
रुखा सूखा जो बन जाए खाकर सो जाती हूँ मां,
अब तो तेरे हाथों का खाना भी मुझको गंवारा नहीं है,
इतने नाजों से मेरे नखरों को सर माथे से क्यूं लगाया था तूमने?
अकेले चलना आया ही नहीं; यहां हर रोज़ नई ठोकर खा रही हूँ
घर से दूर बहुत दूर एक नया घर बना रही हूँ,
मैं ख़्वाबों से हकीक़त के शहर जा रही हूँ।

आपका मुझपर भरोसा मुझे तकलीफों में भी राहत देता है,
राह में मिलने वाली तमाम मुश्किलों से लड़ने की ताक़त देता है,
ये उम्मीदों का गुलदस्ता मुझे जाने अनजाने ही
दुनिया भर की दौड़ में आगे निकल जाने की चाहत देता है,
सुख-समृद्धि और सपनों को सच करने वाली सहर ला रही हूँ,
घर से दूर बहुत दूर एक नया घर बना रही हूँ,
मैं ख़्वाबों से हकीक़त के शहर जा रही हूँ।





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16 FEB AT 22:08

अब कोई फ़र्क़ नहीं आप कहां और कैसे व्यस्त हैं,
मालूम है वक्त लगेगा कुछ दिनों का और ये कष्ट है,
उलझे हुए तो अब बस हम ख़ुद में ही हैं
अमां यार आपको लेकर तो बहुत पहले से स्पष्ट हैं।

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1 DEC 2024 AT 21:18

गर तू ज़िंदगी है तो मेरा मेरी ज़िंदगी से आखिर सवाल क्या होगा?
और रिश्तों के इस समीकरण में गर तू ही ना हो, इस से बड़ा बवाल क्या होगा?

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29 NOV 2024 AT 21:30

जज्बातों को बाहर आने से जाने कबसे जबरन रोक रक्खा है
और दिलजली हूं ना इसलिए तेरे बाद क्या, क्यूं, कैसे? मैने सब सोच रक्खा है।

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22 NOV 2024 AT 0:00

फ़िक्र, सब्र, और इंतेज़ार से भरा हाथों में ज़रूर ये जाम आएगा,
तुम मुट्ठी में संभाले रखना, अब जो यहां से मिलेगा वो आगे काम आयेगा।

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29 JUL 2024 AT 1:51

मुझे मेरी दुनियां में रख कर अपना बना सकोगे?
सभी के होकर भी सबसे ज़्यादा मेरे हिस्से में आ सकोगे ?
छल से जीतने में दुर्लभ प्रेम अपर्याप्त न रह जाए
इसलिए मैं जैसी हूं क्या तुम मुझे वैसे ही अपना सकोगे?

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8 JUL 2024 AT 14:14

ज़िंदगी की किताब के वो हर्फ सबसे बेहतरीन रहेंगे,
जिनमें आपके कलम से सीख लिखी हुई हैं,
कुछ पाने की दौड़ में हमेशा साथ रहना पापा,
देखो ना यहां अच्छे–अच्छो की हस्ती बिकी हुईं हैं।

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