Pooja Rai   (© पूजा राय "शब्दिता" ✍️)
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Writing is life ✍️
Poetry is oxygen....
Instagram ... Lafzo_kikahani
Joined 24 March 2018


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Joined 24 March 2018
23 APR AT 12:24



कब तक चलता रहेगा ये मौत का त्योहार,
अब तो सुन लो इंसानियत की पुकार...
नफरत की तलाश में हो रही मासूमियत बेज़ार,
है लड़ाई धर्म की तो, क्यों हो रहा हैवानियत और अत्याचार...
मेंहदी हाथों में, चूड़ी साजों में, संग प्रीत की बयार,
मिली निरपराध को क्यों, रूमानियत पर वार...
घर उजाड़े कितनों के, है शत्रु इतना विकराल,
धर्म की तलाश में, कर दिया अर्धम का प्रहार...
थी तलाश जहां में, मिले आशियाँ खूबसूरत अपार,
मिलें क्यों फिर, बदनीयत हजार...
मानवता की पूकार, करो तुम स्वीकार,
छिड़ चूकी है जंग जो, करो अब तुम दानव संहार ।

✍️ पूजा राय "शब्दिता"

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10 APR AT 15:14

है ख्वाहिशें बड़ी, तो सबर कर,
भयभीत भय को अब नज़र कर ...
अर्थ की तलाश में ना कोई अनर्थ कर,
है समय बहुमुल्य, ना इसे तू व्यर्थ कर ...
देख मुरझाती कुसुम कुछ तो सबक रख,
फिर नई कोशिशों से जहाँ गमक कर...

है निराश मन तो अब झटक कर,
हृदय कालिमा अपनी तो चाँदनी सी चमक कर...
है जटिल डगर बड़ी, श्रम तू अथक कर,
भेदना है लक्ष्य जो तुझे, ना कोई झिझक कर...
है ख्वाहिशें बड़ी, तो सबर कर,
भयभीत भय को अब तू नज़र कर ||

✍️पूजा राय "शब्दिता "

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31 MAR AT 22:13

To my tiny little precious stone,
who was here and quietly gone...

I never hold you tight,
bit you will always be in my sight...

You can't make it to be in my arm,
but once, you were in my womb...

There was a moment of denial,
when you left me feels like betrayal...

you are not in my life,
but you are treasured part of my life..!!

✍️ पूजा राय ( शब्दिता )

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20 NOV 2023 AT 1:25

यूँ मंद- मंद आंखो का मुस्काना,
तुम्हारा यूँ अधरों का फड़कना,
अच्छा लगता है...
अपनी दबी चाहतों में छुपी ख्वाहिशों को जताना,
तुम्हारा यूँ सब जज़्बात बयाँ करना
अच्छा लगता है...

इश्क में मुझसे, इश्क की इबादत करना,
तुम्हारा यूँ हर बात में मेरी बात करना,
अच्छा लगता है...

शाब्दिक बातों में मेरे, छिपी "शब्दिता" को समझना,
नासमझ बनकर ही मेरे सब भाव समझना,
अच्छा लगता है...
रीत में बंधे सब प्रीत निभाना,
तुम्हारा यूँ मेरा मीत बन जाना,
अच्छा लगता है...

✍️ पूजा राय "शब्दिता " ।।

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5 APR 2023 AT 21:58

यूँ मंद मंद, आँखों का मुस्काना,
तुम्हारा यूँ, अधरों का फड़कना,
अच्छा लगता है...
अपनी दबी चाहतों में, छुपी ख्वाहिशों को जताना,
तुम्हारा यूँ, जज़्बात बयाँ करना,
अच्छा लगता है...
इश्क़ में मुझसे, इश्क़ की इबादत करना,
तुम्हारा यूँ, हर बात में, मेरी बात करना,
अच्छा लगता है...
शाब्दिक बातों में मेरी, छिपी "शब्दिता" को समझना,
नासमझ होकर भी तुम्हारा यूँ, मेरे सब भाव समझना,
अच्छा लगता है...
रीत में बंधे, सब प्रीत निभाना,
तुम्हारा यूँ, मेरा मीत बन जाना,
अच्छा लगता है ..।।

✍️ पूजा राय (शब्दिता) ।।

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2 APR 2023 AT 19:21

ज़िन्दगी की जंग में किस्मत फरार हो रही,
अन्त की अनन्त से तकरार हो रही...
सागर की तलाश में नौका,
दरिया पार कर रही...

मद्धम ख्वाहिशों में उलझा मन,
ख्वाबों से इकरार कर रहा...
जीवन के जंगल में खुद को,
नित निछावर कर रही...

श्वास में अपनी विश्वास, बरकरार कर रही...
तो क्या हुआ, राह में हार मिल रही...
है तलाश मंजिल की,
जो अग्रसर जीत का इंतज़ार कर रही ...।।

✍️ पूजा राय (शब्दिता) ।।


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1 APR 2023 AT 21:51

फिर इक खत, उस नाम लिखा है,
खत में ही, अपना सलाम लिखा है...
एहसास दिल के तमाम लिखा है,
चाहतें प्रीत की सरेआम लिखा है...
यादें रेत सी फिसल रही,
यादों में ही सारे अरमान लिखा है...
भोर भरे चहचहाती चिड़ियों का,
प्रणाम लिखा है...
कुछ अपनी, कुछ सब ग्राम लिखा है...

कुछ बुढ़ी आँखों का इंतज़ार लिखा है,
सब जज़्बातों का इज़हार लिखा है...
बढ़ते कल का सब स्वीकार लिखा है,
ख्वाहिश हृदय के बारम्बार लिखा है ...
उमड़ते- घुमड़ते बादलों सा,
जीवन में बदलते सब किरदार लिखा है...
इक खत में ही अपने,
सब किस्सों का सार लिखा है..।।

✍️ पूजा राय (शब्दिता) ।।

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23 MAR 2023 AT 23:06

प्रेम मगन मैं प्रेम लिखुॅ,
चाहतें सारी सप्रेम लिखुॅ...

अहसास दिल की दिल में भरूॅ,
ख्वाब सारे ऑंखों- ऑंखों में बसाऊं...

रिश्ता तेरा जो मुझसे जुड़ा,
आखिरी सांस तक साथ तुझ संग निभाऊं...

प्रीत हमारी कोई प्रीत नाम सजाऊं,
हो अज़ाद प्रेम में रूह इतनी की,
मिलन में तुझसे राधे- श्याम कहलाऊं..।।

✍️ पूजा राय (शब्दिता)
@ लफ्जों की कहानी ।।

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21 SEP 2022 AT 12:46


मुस्कान बिखेरती रुह इक,
आँखों में नमी दे गई ...
लौ, कोई हंसी की, आज बुझ गयी...
जीने का सलीका, जो सिखाता रहा,
ज़िन्दगी से आज, खुद हार गया..।।

।।नमन।।

✍️पूजा राय "शब्दिता" ।।


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13 JUN 2022 AT 21:20

मिलें हैं रिश्ते कुछ अनजाने से,
डर नहीं लगता जिन्हें अपनाने से...
थी ख्वाहिशों में उलझी अल्हड़ नादानियाँ सारी,
संग उनके ही हुई शैतानियाँ सारी...
ख़्वाब उनके अनगिनत रंगीन थे,
गुस्सा और नाराज़गी भी थोड़े संगीन थे...

मिला था कोई गंगा सा पावन,
तो था कोई धरा पर यमुना- सरस्वती सा मनभावन...
पहिया घुमा वक्त का ऐसे, बिखरे सारे ना मिले थे जैसे...
रिश्ते सारे अपने से, हो गए कुछ अनजाने से...

मिलने की ख़्वाहिश थी, शुरू हुई फिर वक्त से लड़ाई थी...
उलझते सुलझते ख्यालों संग, फिर हुआ समागम कोई,
जैसे हो रहा 'शब्दिता', प्रयागराज में संगम कोई...!!

✍️ पूजा राय (शब्दिता) ।।


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