Pooja Mohan Pandey   (Pooja Mohan Pandey(अपूर्ण))
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पर्दा गिरने से पहले , अपना 'किरदार' गढ़ रही हूं , 'प्रेम' की तरह 'अपूर्ण'ता का किरदार
Joined 14 August 2019


पर्दा गिरने से पहले , अपना 'किरदार' गढ़ रही हूं , 'प्रेम' की तरह 'अपूर्ण'ता का किरदार
Joined 14 August 2019
27 SEP 2021 AT 1:10

अभी नज़र आते हैं,
नुस्ख़ बेशुमार।
ये दुनिया है,
जां निकलते ही कहेगी,
कुछ भी कहो-
इंसान बड़ा अच्छा था।।

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12 SEP 2021 AT 3:13

प्रेम ने ,
प्रेम को,
प्रेम से कहा।
प्रेम ही तो है,
कोई अज़ाब थोड़े है।।

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21 AUG 2021 AT 1:31

भावहीनता के मुहाने पर होना।
कुछ यूं बसर होना कि -
दरिया दिखना और प्यासा होना।।

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3 JUL 2021 AT 1:39

बना रहे हो राय,
जो तुम उसकी ज़िल्द देखकर।
किताब की भी ख्वाहिश है,
उसे हर हर्फ़ पढ़ा जाए।।

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7 MAY 2021 AT 12:43

वो कत्ल कर रहा है,
इंसानियत हर रोज़।
कहता है लाश ढोने को,
इंसा नहीं मिलता।।

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30 MAR 2021 AT 0:27

रंग बहुत थे दुनिया में,
ये चूनर रंगवाने को।
उसने संघर्ष की कीमत दे,
सत्य,पराक्रम
और न्याय के रंग रंगवाई है।

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23 MAR 2021 AT 22:55

वो हर रोज़ सुकून में होता है,
मुझे तोड़ने की कोशिश करके।
मैं मुस्कुरा देती हूं सोचकर
'शिव'
कैसे मुझे और बेहतर कर रहे हैं।।

(शिव- परमशक्ति)

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9 MAR 2021 AT 22:04

होने दो आकाश सा मुकम्मल,
उड़ने दो अरमानों को।
ये जिस्म है,
बंदिश-ओ-दीवार थोड़े न है।।
और ये जो बदबख़्त दरिया सी,
दिख रही हैं निगाहें उसकी।
माना गहरी हैं बेहिसाब,
पर अनकहा अज़ाब थोड़े न हैं।।

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4 FEB 2021 AT 21:13

पुरूष को सहेजना चाहिए,
खुद में कुछ स्त्रित्व भी।
दया
प्रेम
संतुलन
अपनत्व
और
सहनशीलता
ये बेहतर समाज लिए भी तो अभिन्न हैं न?

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27 JAN 2021 AT 19:03

सुनो,
सुनो क्या कह रही है निगाह उसकी,
होगा तुम्हारे पास लश्कर जंग लड़ने को,
पर वो जो निहत्थी दिख रही है,
खुद में लश्कर है।
उसे क्या मार लोगे, तुम बताओ?
जिसकी कमबख्त नज़रें ही नश्तर हैं।।

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