जीवन का अर्ध सत्य , जीवन का अर्ध ज्ञान
मृत्यु संग अश्रु , जन्म संग मुस्कान
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या सोचती हूँ तुम्हें लिख दूँ!!
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ज़िंदगी मिले तो पूछूं उस से
क्यूँ मुझे इतना बेबस है बनाया?
सजी तो मैं भी हाड़ मांस से हूँ
फ़िर क्यूँ किसी पुरुष से अलग है बिठाया?
मेरी ही कोख मे पलता है वो
फ़िर क्यूँ मुझे तिल तिल कर जलाया?
ज़िंदगी मिले तो पूछूं उस से..-
घर, घर नहीं रहे
ईंटों की दुकान हो गए
दिलों से प्यार हवा क्या हुआ
रिश्ते पहले सामान , फिर
श्मशान हो गए —-
साड़ी
मेरी 6 गज की साड़ी पर सवाल करते हो,
मेरी अस्मिता और पहचान पर बवाल करते हो
तुम बन बैठे हो आधुनिकता के माई बाप
अब तो तुम औरत क्या पहनेंगी इस मुद्दे को तार तार करते हो
मुझे मेरी साड़ी के कारण दुकान में प्रवेश नहीं दिया
अरे पूछ सकती हूं क्या मैं तुमसे तुम किस नस्ल से मिसाल रखते हो?
भारत में रह कर भारत की परंपराओं से गुरेज कर रहे हो
नारी की पहचान और नारी की पोशाक से परहेज कर रहे हो
ये 6 गज की साड़ी सिर्फ़ मापदंड नहीं है देह ढंकने का
इसे नकार कर तुम ने मेरी ममता, लिहाज़, मर्यादा सबका अपमान किया है
मेरे हर रूप, रिश्ते और अस्तित्व को बेईमान किया है
क्या मैं पूछ सकती हूं तुमसे की तुम किस मिट्टी से जुड़ के फले फूले हो
ऐसी कितनी औरतें हैं जिनके सम्मान से खेले हो??
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भीड़ में भीड़ को पहचाना है आसान
अपनों में अपना ढूँढना है मुश्किल
नफ़रत से कोई कत्ल कर दे तो कोई ग़म नहीं
क्या करोगे जब मुहब्बत ही निकले क़ातिल
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Self-love is good sometimes, at least you will get to know about the expectations that you have from you!
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दो किनारों की तरह हम बैठे हैं आस पास
ना अपनों की चुभन, ना गैरों की तलाश
तुम देखते हो मुझको बस यूँही दिन रात
ना कहते हो कुछ ना सुनते ही मेरी बात-
किसी से सुना था मैंने की प्रेम कहानियां अधूरी ही रह जाती हैं, पर मेरी समझ से तो प्रेम अपने आप में ही परिपूर्ण है l जैसे नदी और किनारे को अलग नहीं किया जा सकता, ठीक वैसे ही प्रेम को किसी के हृदय से अलग नहीं किया जा सकता l लहर डूबती है, उफनती है और आते जाते अपने स्पर्श को किनारों तक संदेश रूप मे पहुचा देती है l
प्रेम भी तो कुछ वैसे ही है, संघर्ष में, रुदन में, रोते गाते, अपने होने को बिना कुछ कहे एक हृदय से दूसरे हृदय तक पहुंचा ही देता है...-
दूध, फल, मेवे से सींचे जाते है बेटे
घास-फूस, लताओं सी बढ़ जाती हैं बेटियाँ
भ्रांति भ्रांति के व्रत तप से
जिलाए जाते हैं बेटे
चूल्हा चक्का करते जनम जाती हैं बेटियाँ
घर का वंश चलाने को मशहूर होते हैं बेटे
कोख अपनी देकर भी ना पूजी जाती हैं बेटियाँ
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कोरे काग़ज़ पर कुछ लिख देने की गुंजाईश होती है l
कोरे रिश्तों में नहीं... समय का खालीपन किसी अपने के आ जाने से भर जाता है लेकिन वही खालीपन अगर किसी अपने ने दिया हो तो समय भी उसे नहीं भर पाता......-