अक्सर...अकेली बैठी बैठी,
निहारती हूं मैं घर की खिड़की...!
देखती हूं, कभी रास्तों से चल रही वाहनों को,
तो कभी मनुष्यों की भीड़ को...!
अकेलापन क्या है,
अब मुझे समझ में आने लगा है..!
दिनभर खुद को अकेला पाके,
यह दर्द मन को अब भाने लगा है...!
देखती हूं, खिड़की की छज्जों पर अक्सर,
कुछ चिड़ियां आती है दाना चुगने...!
बिखरी हुई उन दानों में,
कुछ नवीन प्रेम कुछ सपनों को ढूंढने...!
-
Pooja Mandal
(पूजा मंडल (अभिव्यक्ति))
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लेखन की कला में होती है वह शक्ति ,
जो निज वाणी को प्रदान करती है अभिव्यक्ति ।।
😊
🎂22 septem... read more
जो निज वाणी को प्रदान करती है अभिव्यक्ति ।।
😊
🎂22 septem... read more
Joined 2 April 2020
14 JAN AT 16:06
1 JUN 2024 AT 7:40
जोश नया स्वयं में भरकर देखो ।
तभी जो चाहो वह पाओगे
जब कठिनाइयों से नहीं तुम घबराओगे ।-
15 AUG 2023 AT 21:09
अभी समय नहीं है डरने का...
अभी ही तो समय है कुछ करने का..!
क्योंकि, सफ़र यहीं है ज़िंदगी का...
और यहीं ज़िंदगी है आज़ादी का..!-
25 JUN 2023 AT 19:48
मन की अनगिनत परतें है,
कि इसकी भी कुछ सरतें है..!
है जीवन में खुश रहना अत्यंत ज़रूरी,
चाहें जीवन में आए कितनी भी मजबूरी..!-
25 JUN 2023 AT 19:22
किंतु कुछ इसकी भी सरतें है..!
कि... जीवन में खुश रहेना भी है अत्यंत ज़रूरी,
चाहें जीवन में आए है कितनी भी मजबूरी..!-
15 MAY 2023 AT 0:20
सपने मन में तुम भी बूनों...!
राह जीवन में अपने स्वयं से चुनो
और धड़कन सदा अपने दिल की सुनो...!-
19 MAR 2023 AT 17:08
क्यों हो जाते हो गुम...
बल्कि...!
मचाओ जीवन में कुछ ऐसा धूम...
ताकि अपने सपनों से
स्वयं उड़ान की पंखों को चूम...!-