अजीब कशमकश है ये इश्क भी
जिससे नाराजगी है
उसी का इंतजार है 💔
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जो जुबान पर नहीं आती
पर दिल में है समा जाती
💚Ultimate_p2💚
Writing makes... read more
ईंट, रेत और सीमेंट से तो बनता है मकान
प्रेम, रिश्तों और अपनेपन से डल जाती है जान ,
गाँव-गाँव और शहर-शहर में यही ढिंढोरा है
कि अब तीन मंजिला मकान में सोना है,
पर इंसान भूल गया अपने वो पुराने दिन
जब खुशियाँ रहा करती थीं मकानों के बिन,
क्योंकि जब गांव में घर हुआ करते थे
सब आजाद पंछी की तरह प्यार से रहते थे,
गरीब के जीवन में तो मकान भी नहीं होते हैं
पर वो झोपड़ी को घर बनाना बखूबी समझते हैं,
दोस्तों मकान को तो घर बनाना पड़ता है
प्यार और विश्वास से सहेजना पड़ता है,
आज इंसान को यह बात समझनी होगी,
वरना हर जगह सिर्फ़ और सिर्फ़ दीवारें होंगी।-
प्रिय तुम्हारी याद में
लगाया है तुम्हारा इत्र,
महक रही हूं तुम्हारी तरह
महसूस करने को तुम्हें...
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उसके हाथों ने कुछ यूं छुआ मेरे गालों को
कि मैं ये सोचकर ही मुस्कुराने लगी।
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लाख अच्छाई हो तुम में
गर कर दिया कुछ ऐसा
खिलाफ इस खोखले समाज के
तो गुनहगार बन बैठोगे ।
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क्या अब कभी नहीं आओगे पापा?
हमें यूँ गले से कभी नहीं लगाओगे पापा?
क्या हमसे इतना नाराज हो गए?
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....
फिर सोचा करती थी
कि विदाई पर तो गले लगाना ही पड़ेगा
उस दृश्य को मैं महसूस करती थी
और कल्पना किया करती थी
उस क्षण की और
खो जाया करती थी...
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क्या अब कभी नहीं आओगे पापा?
मैं अक्सर हिचका करती थी
आपको गले लगाने में
कभी गले नहीं मिल पाई ....
फिर सोचा कोई नहीं
एक बार तो ऐसा मौका आएगा
और फिर खो जाती थी
अपने शादी के खयालों में...
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"I have more important things to do."
"Am I not important?"
"You were."
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