Pooja HNY Rajput   (Pooja HNY Rajput)
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Joined 25 September 2020


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Joined 25 September 2020
25 AUG AT 4:19

कुछ इस तरह संतुलन बनता है
कड़ी जद्दोजहद के बाद,
फिर डटके सामना आँधियों का कर
गिरता चोट खाता है।
जब तक ज़िंदा हूँ
मर नहीं सकता,
टूटा आत्मविश्वास मेरा
उपचार स्वयं से कर जी उठता है।

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23 AUG AT 15:37

गति नियंत्रित रहेगी तुम्हारी,
सीख सकोगे पूर्ण रूप से
कण में भी अनुभव बसे हैं भारी।
बोझ न डालो मस्तिष्क पे अपने
फलने दो आत्मविश्वास की क्यारी,
बड़े इरादे भी होंगे पूरे,
पहले सरल पाठ रचने की है बारी।
जीवन रूपी अनुभवों की सीढ़ी
चढ़ते रोज़ ज्ञान को पाए सवारी।
चलता जीवन मिलते अनुभव
निपुणता व्यक्तित्व पा जाए सारी।
बूंद बूंद से सागर बनता है
फटता बादल हानी पहुँचाता भारी,
प्रबंध उचित कर जो लक्ष्य को बाँधें
रिमझिम हिम्मत बरसाए ईश्वर उपकारी।
छोटे छोटे लक्ष्य रखो
गति नियंत्रित रहेगी तुम्हारी,
कछुए की गति से मैं हूँ प्रेरित
संयम संग ऊर्जा रहती है जारी।

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24 JUL AT 14:18

जब ख़्वाब अदृश्य हुए
पहचान हुई हक़ीक़त से,
कमज़ोर निगाहों में कैसे
टिक पाते वे भारी भरकम?

आँखें जब धुंधली होने लगी
दुनिया बेहतर से समझ आने लगी,
बस ख़्वाब ही ओझल हो गए हैं
और बचा नहीं मुझमें उद्यम।

हर कार्य अधूरा लगता है
जिस्म बन बुत बैठा रहता है,
न लक्ष्य कोई न आशा पनपे
मानो त्रुटियाँ भरती मुझमें दम।

ख़्वाब जो थे सहारा थे
आदत, जज़्बा और मुहब्बत थे,
अब नहीं उम्मीद कि विश्वास टिके
मन अक्सर भिड़ता पाले हुए ग़म।

जो ख़्वाब नहीं मैं कुछ भी नहीं
ज़िंदा लाश बन घूम रहा,
मुझमें बन धड़कन, साँसें ख़्वाब थे
अब न सुर संग मेरे न है सरगम।

जब ख़्वाब अदृश्य हुए
पहचान हुई हक़ीक़त से,
कि चाहे जितना वहम को पालू
नियति तोड़े मन के सारे भ्रम।

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21 JUL AT 16:43

भीतर से आती आवाज़ सुनो,
भिनभिनाती मधुमक्खी भाँति
मन मँडराती गुहार सुनो।

बाहर की घातों को संग रखकर
उनको सहकर ऊर्जा खोकर,
बेचैन न खुद को किया करो
पोषण सुविचारों का कर अस्तित्व से अपने प्रेम करो।

रहना सरल है अपने संग में
है कठिन ज़माने के रंग ढंग
अनमोल एकलौते जीवन को व्यर्थ नहीं बरबाद करो,
संतोष निधि की पाई पाई जोड़कर एक की चार करो।

जब आँधी उठे है ईर्षा की..दिखावे की,
मन को कर एकाग्र तुम अपने कर्म पे पूरा ध्यान धरो,
जब दिखे बवंडर मतलब का तब तुम,
कोने होकर स्वयं में लीन रहो।

अपने साथ भी रहा करो
भीतर से आती आवाज़ सुनो।

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13 JUL AT 1:39

दुनिया से घिरे आज कहने लगे वो
कि अकेले आए थे अकेले जाना है,
ज़रा पूछे कोई उनसे कि जब असल में
थे अकेले तब कौन खड़ा था साथ तुम्हारे?

जिसने भीड़ में रहकर बस तुम्हें ज़हन में रखा,
आज तरसता है वो एक नज़र को तुम्हारी।
न अकेलेपन और न ही तड़प में बैठा है,
दिल हैरान है देख बदले मिज़ाज तुम्हारे।

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9 JUL AT 13:36

लगा हर बार पूरा होने पर,
है मुझमें लगन जी तोड़ पर
हुआ कार्य अधूरा सा है।

अधूरी समझ, अधूरा कल
देखा हर स्वप्न अधूरा सा है,
हर क्षण आज को जीता,
जगा आत्मविश्वास अधूरा सा है।

पूरा क्या होता है?
उत्तर बिन प्रश्न अधूरा सा है,
स्वयं को कोसे हर प्रयास
न जाने क्या पूरा क्या अधूरा सा है।

मिला श्रोताओं का साथ अधूरा
कटाक्ष व्यवहार पूरा पूरा है,
पायी प्रशंसा सुनकर अक्सर
किंतु बल विश्वास अधूरा सा है।

मिला तो ठीक न मिला तो बेहतर
कथन करारा दे देता सहारा है,
संतोष को पाता मन फिर भी कहता
कुछ अधूरा सा है…”

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7 JUL AT 12:07

The obstacles in her journey were not really
important. They were envy of the power of her
luck. Honesty in the world of competition
pays a heavy price of emotions.

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3 JUL AT 12:03

सम्मान बड़ा उपहार से,
न बड़ा मान से कोई।
बेहतर उपहार न दीजिए,
न बसे ह्रदय मान जो कोई।

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24 JUN AT 11:54

मैं सुबह से भागा आया हूँ।
एक थका हुआ हूँ बेहद मैं,
दूजा दुनिया से हारा आया हूँ।
न चेहरे पे गिरे उजली किरण,
न पढ़ कर हाल कोई भाँप सके।
न पीछे आए प्रश्न कोई,
न सामने कोई खड़ा रहे।
संग हाल पिटारा लाया हूँ,
मैं रहने यहीं अब आया हूँ।
दिन से हारा तेरे दर पर मैं,
दरखास्त पुरानी लाया हूँ।
भारी आँखों में उखड़ी सी
आशाएँ बंद कर लाया हूँ।
दामन में छुपा ले रात मुझे,
मैं सुबह से भागा आया हूँ।

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22 JUN AT 2:51

साधना कवि की है भाषा कविता,
शैली अनूठी भक्ति भरी।
हो लीन कवि राज ध्यान योग में,
जब अंतर्मन से कोई कड़ी जुड़ी।
माध्यम शब्द हैं और विचार है धारा,
संग भावों की अनुपम डोर बुनी।
उठे तरंग उत्साही मन से तब,
जब प्रवाहित भावना परिपक्व हुई।
योगी स्वयं में मगन है रहता,
बाहरी मोह की बँधती गाँठ खुली।
शब्दावली धरे कविता आकार तो,
सृजनात्मक दृष्टि तेजस हुई।

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