Pooja HNY Rajput   (Pooja HNY Rajput)
87 Followers · 75 Following

read more
Joined 25 September 2020


read more
Joined 25 September 2020
10 HOURS AGO

साधना कवि की है भाषा कविता,
शैली अनूठी भक्ति भरी।
हो लीन कवि राज ध्यान योग में,
जब अंतर्मन से कोई कड़ी जुड़ी।
माध्यम शब्द हैं और विचार है धारा,
संग भावों की अनुपम डोर बुनी।
उठे तरंग उत्साही मन से तब,
जब प्रवाहित भावना परिपक्व हुई।
योगी स्वयं में मगन है रहता,
बाहरी मोह की बँधती गाँठ खुली।
शब्दावली धरे कविता आकार तो,
सृजनात्मक दृष्टि तेजस हुई।

-


20 JUN AT 13:10

पहले कहाँ पता था अर्थ दुनियादारी का।

आँख मींच विश्वास परोसे,
कोमल भाव सभी को सौंपे।
हाँ गलती से बाँधी आशाएँ था तोड़ नहीं जिनका,
पता नहीं था पाठ स्वभाव से अलग है दुनिया का।

पागल मन हर बार को लौटे,
न सुधरे पर न सब कुछ भूले।
जाने क्यों निढाल पड़े पाले रहा निर्भरता?
समय लगा पर समझ मैं आया पाठ जीवन का।

न मैं बन पाया दुनिया का,
न मन टिक पाया मेरा उलझा सा।
पर जाने क्यों रंग अब चढ़ा दिखे मुझपर है दुनिया का,
न पहले सा भाग रहा पीछे बन इन्सान मैं दुनिया का।

मायूस हुआ मन न पूछे क्या हाल है दुनिया का,
न इच्छुक खेलने को था पर सीखा कटु दांव दुनिया का,
दुनिया से सीखा है मतलब दुनिया का,
पहले कहाँ पता था अर्थ दुनियादारी का।

-


18 JUN AT 0:13

जो ज़ोर से कानों को लगती है।
तुम्हारे नहीं मेरे,
चूँकि तुम तक कहाँ आवाज़ मेरी पहुँचती है?
अंदर निरंतर मुझमें चीखती है,
दिमाग़ उलझाकर रख देती है।
रफ़्तार साँसों की तेज़,
मानो धड़कनों संग दौड़ में रहती हैं।
बाहर भी कहाँ आराम में है?
दुनिया की नज़रों में चढ़ती है।
गुनगुनाए अंदर.. सोए जागे अंदर,
ख़ामोशी ज़माने से कटती है।

-


8 JUN AT 21:25

अक्सर ख़याल आता है
दिमाग़ सुन्न पड़ जाता है,
दुनिया की नज़र में पत्थर..
दिल ख़ुद को ख़र्चे जाता है?

कठपुतली सा दिल
जाने कितना ही नचाता है,
थकता है दिमाग़…
थककर सो जाता है।

बेचारा नहीं अपनी हद में
है ज़माने के बस में,
खाता है मुँह की हर बार…
हो खड़ा फिर उम्मीदें पालता है।

सोचता है सब हैं अच्छे
वो ग़लत बाक़ी सब सच्चे,
दिखाता असलियत दिमाग़..
क्यों पापी सा लगता है?

दिमाग़ कराता है रूबरू
दिल को उसके जज़्बातों से,
है ईमान जहाँ महफ़ूज़…
वहीं सुकून बसाए रखा है।

दिल दिमाग़ की बहस पुरानी
एक जीते जो हार दूजे ने मानी,
सख़्त दिमाग़ उधड़े दिल को बुनता है,
जग से हारा दिल दिमाग़ की सुनता है।

अक्सर ख़याल आता है
दिमाग़ सुन्न पड़ जाता है….”

-


4 JUN AT 15:19

वह कड़ा पाठ है जो अनुशासन और
दृढ़ता के भाव पूर्ण रूप से व्यक्तित्व में भर दे,
ताकि व्यक्तित्व विकास हेतु संकल्प साध
मन एकाग्रचित होकर जीवन साकार कर ले।

-


4 JUN AT 15:03

भरकर नज़र में प्यार उड़ेला है पूरे दिल से तुझपे,

नज़र लगाने की फ़ितरत मैंने पाली ही नहीं।

-


2 JUN AT 23:00

अपेक्षाओं ने सकारात्मक चित्त की शांति निगली,
भले मन पे नकारात्मकता कब हावी हो गई?
बीज बोकर प्रेरणात्मक हज़ार जाने क्यों टूट गया?
मानो करते मिन्नतें बार बार जग से वह रूठ गया।
सृजन साधना भाव संग भीतर से पनपता है,
अब हताश मन बेचारा कहीं न लगता है।
काश की अपेक्षा की सीढ़ी चढ़ी न होती,
काश की एक सीमा उपरांत मोह से मैं कटी रहती।
बदलाव को स्वीकारने में ही है सुबुद्धि,
रिक्त नयन मुख को विश्राम देते और जताते सहानुभूति।
अपेक्षाओं ने सकारात्मक चित्त की शांति निगली,
भले मन से चलते नकारात्मकता कब हावी हो गई?

-


1 JUN AT 12:31

किसने कितने कर्म कमाएँ क्या काले क्या कोरे?
बहती जीवन धारा में कहाँ समय बचे गिन पाएँ।

-


1 JUN AT 11:19

घमंड मर्द को उसकी मर्दानगी पर,
उसपर रोब एक क़र्ज़।
महँगा पड़ा महबूबा को इश्क़ का सबक़।

-


1 JUN AT 3:57

प्रेम का मतलब क्या है……
और अगर मतलब है तो प्रेम कैसा?
अपेक्षाओं की बुनियाद पे खड़ा
प्रेम प्रेम ही है या है दगा?
फरेब अपनेआप से और फिर ज़माने से भी,
प्रेम की परतें चढ़ा रोग है ताउम्र का।
बोझ है, रोध है लगता मुझे अपराध है,
जो खुद ही का दुश्मन बने
ये प्रेम नहीं किसी काम का।

-


Fetching Pooja HNY Rajput Quotes