चाव में ही है भाव
माटी कुंभे कुम्हार जब प्यार से
होता तब लगाव उस नए आकार से
नाविक जब करे बात लहरों से
होता तब पार नौका किनारो में
बढ़ई करे जब निर्माण प्यार से
होता तब हर रखरखाव एक बराबर हैं
दर्जी ढंग से जब नापे कोने हर बार
होता तब मन का पहनावा तैयार
अब हर कोई जब बोले प्रेम से शब्द चार
फिर भला कैसे रह जाए कोई बेकार
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मुख न बुलाए बड़े बोल ।
वाणी आभूषण ही हैं अनमोल ।।
जो तुम कथनी मे रखो कथन ।
तो सिद्ध करो करनी मे वचन ।।-
मानो खीच ले जाती है कोई शक्ति उसके दरबार ।।
ना लगती है देरी ना होने देता है वो अंधकार।।
बस जपते उसका नाम ही सुन लेता हैं वो मेरी पुकार ।।
क्या खूब रस है तेरी भक्ति में अपरम्पार।।
मोहन के लिए जैसे मीरा ने त्यागा था संसार।।
ऐसा लागे मुझे भी तेरा जोग महादेव बारंबार।।-
कुछ कमी हमेशा से ही मुझे खलती है ।
और मिलता नहीं सुकून इस चाहत में अक्सर शाम-ए ढलती है ।।
अफसोस मुझे मिली तकलीफ से नही होता ।
बस मोहलत मे मिली खुशी से कभी मन शांत भी नही होता ।।
मलहम करता है वक्त मेरा पर अब जख्म नही भरता ।
और शिकायतें करने की जगह सिर्फ मिन्नते ही है करता।।
रह गई हूं अकेली सबका होते साथ भी ।
क्या खूब लिखी तकदीर में मेरी तूने हर बात थी ।।-
यूं कहूं तो बिखरा सा था साथ हमारा ।
जो आज भी अधूरा रखता है राज़ तुम्हारा ।।-
अनसुनी की थी मेरी बात......
तपती भट्टी ,जलती रही आग
भस्म होकर भी बाकी रह गए भाग
ना डाली शीत ने अपनी नजर
ना आया हवाओ का तेज कहर
मुश्किल पड़ा बस मुसीबतों का सफर
मैं कहती रही वो सुनती नहीं थी बात
निभाती साथ जैसे चूल्हे संग होती राख
ताड़ सी गज रूप, अदभुत है तेरा स्वाभिमान
छाव की चाव मे तरस गया मेरा अब अभिमान
कठोर कहूं या कटूरता तेरी ?विचलित हैं मन
देख तेरी उदारता विचित्र लगे मुझे हर क्षण
ना रही अपनी ,ना समझी किसी ने मेरी एक बात
उलझती रही कहानी मेरी ,लेकर अनगिनत राज़-
मैं ....
मैं हस्ती-मुस्कुराती जो खुद को साथ लाई थी ।
अब भूल गई हूं? क्या मैं भी कभी मुस्कुराई थी ।
थोड़ी खिट्-खिट् होगी तो सहना होगा, पर साथ तुम्हें उसी के रहना होगा ।
आखिर मुझे ही क्यों सिखना होगा, सही क्या सिर्फ उसका ही कहना होगा ।
जहां मुझसे गलतियां गिनवाई जाएंगी ।
तो उसकी गलती नादानी बतलाई जाएगी ।
यह अंतर का भाव कैसा क्या मुझे कोई बताएगा ।
इस बंधन में ताव कैसा क्या वो ही अपना-अपना जताएगा ।
एक पैर पर खड़ी मैं ,सब तुझे ही करना होगा ।
बच्ची नही है तू ,तुझे ही सिर्फ बड़ा होना होगा ।
फिर तो मैं ही समझदार हूं जब इस बात में इतनी सच्चाई थी ।
तो क्यूं उठाते मेरे आवाज मेरी बोलती बंद उसने करवाई थी ।
यह मुझ अकेले को जो फर्क की परख कराई जा रही है ।
इस कहानी का कोई अंत नहीं ,एक बार फिर वही रीत दोहराही जा रही हैं ।
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Judgement eligibility
Prior to myself I have cleaned different mediums for such mentality, where most are in the line of equality based addictions... finally I faced the same thing for few days, and which I found it to be a disease. The symptom likely felt as if it became very important for her to pay or attract more attention to her otherwise it would be frustrating towards you.
Nature is possible!I don't believe in such things, but I can't ignore them either. Wherever and whenever I looked I also counted how long it's happened to me now as you think it's funny no darling it's purely mental disorder problem and don't call it maturity because being such nonsense But I didn't think that you have made any improvement in yourself and I will still be with you. Especially I do not appreciate this behavior for your maturity..... be careful-
माँ
खलती है अब कमी मुझे
जानती तो तू भी है यह बात ?
कहना हुं चाहती बस तुझसे ही
मगर सुनती नहीं तू अक्सर मेरी बात
मंजूरी से ही होगी हर बात हमारी
फिर क्यूं रह जाती हैं तू चुप-चाप
तड़पती हूं फिर भले मैं भी
तो तू भी तो हो जाती है निराश
बहुत आती हैं मुझे तेरी याद
काश समझती तू भी मेरी इतनी सी बात...........
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