सर पे ख़्वाहिशों का वबाल हुआ जाता है
टूटे तारे जैसा हाल हुआ जाता है-
नमाज़ी
मैं पाँच वक़्त का नमाज़ी,
ना दिन ना पहर देखता हूँ,
ना धूप ना दोपहर देखता हूँ,
मैं पाबंद मेरे उसूलों का
बस ख़ुदा को अपने
शाम-ओ-सहर देखता हूँ।-
सिर्फ़ मेहनताने का ही तो फ़र्क है जनाब,
यक़ीनन ही एक आम आदमी की जद्दोजहद ज़्यादा होगी।-
झुकती उठती सी नज़र
शर्माती सी मुस्कान
कंपकंपाती सी आवाज़
ऐसा है कुछ उससे पहली
मुलाकात का एहसास।-
ना तेरा ज़िक्र ज़ूबां पे,
ना तेरा इत्र हवा में,
एक धुंधली सी परछाई ज़हन में,
फिर भी अश्क भरें इन नयन में।-
तेरी मुस्कान की चमक तेरी आँखों तक नही जाती,
मुझे तेरी हँसी में अब वो पहली सी ख़ुशी नज़र नहीं आती।-
हमसे अदावतों का दौर ज़ोरों पे है
मोहब्बत का ज़ोर उनका औरों पे है
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बड़े ज़ालिम हैं रात भर जगा के उनके ख़्याल आते हैं
फिर क्यों इश्क़ हो कर भी वफ़ा पे सवाल आते हैं
बैठें हैं तसव्वुर में के चेहरा याद आ जाए निगाहों को
मुद्दत बीत गयी ना बताया ना पूछने हाल आते हैं
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मेरी साँसो में बसा है नशा तेरा
तू मेरी है यक़ीनन मैं हूँ बस तेरा
शक़ ना करना वफ़ा पे मेरी कभी
तलब ढूँढे तुझे शाम हो या सवेरा
रखता हूँ दिल के क़रीब इतना
जुदा जो हो तो निकले दम मेरा
इंतज़ार रहता है छू ले लबों को मेरे
तेरी छुअन से पिघले रोम रोम मेरा
फूंकती है बस जिस्म तू मेरी जान
जलाती नहीं प्रेमिका सा दिल मेरा
लगाता हूँ कश पे कश गहरा
ऐ सिगरेट तू ही एक सच्चा प्यार मेरा-
रोज़ दफ़ना कर ख़्वाब अपने ख़ुद मर जातें हैं
भटक लिए बहोत सड़कों पे अब बस घर जातें हैं-