मेरी कहानी तो उसी दिन खत्म हो गयी थी..
जिस दिन मेरा राजा किसी और रानी के कहानी का हिस्सा बन गया...!-
उसी का तो ये सारा किस्सा है.
उसके पास एक ही विकल्प था
"Strong बनना "
यकीन मानो वो लड़की बिल्कुल बहादुर नहीं थी!-
मैं पत्थर बनके गुरूर तोड़ दिया..
जिसे ये घमंड था मैं उसकी मोहब्बत में ,
रेत बन कर बह जाऊँगी...!!-
इतना भी जिम्मेदार नहीं बनना था पूजा ...।।
की
दूसरों की फ़िक्र तुझे सोने ना दे.....।।-
ये दिन यूँही रंजिशो में गुजर गया. ..
कभी मैं खफा.. कभी वो खफा
चाहतों के मोड़ पर
कभी वो रुका.. कभी मैं रुका..
वही रिश्ते वही मंजिले..
ना उसे खबर.. ना मुझे पता.
अपनी अपनी अना मे गुम..
कभी मैं जुदा.. कभी वो जुदा..
दिन यूँही रंजिशो में गुजर गया
कभी मैं खफा.. कभी वो खफा..!
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सब खोकर भी कैसे मुस्कुराया..
मैंने तन्हाई में खुद को संभालना सीखा है..
कोई कितना ही बुरा कर लेगा मेरा
मैंने आंसुओ को लफ्जों मे सजाना सीखा है...
और एक क्लब है जो फकत धड़कता है सीने में..
मैंने दर्द मे भी इसको हंसाना सीखा है..
जो बिछड़ गया.. उसके लिए क्या आँसु बहाना..
मैंने सब को माफ कर.. खुद को आजमाना सीखा है..
एक पल भी कहाँ गुजरता था तेरे बगैर..
मगर देख एक ज़माना गुजार दिया हमने..!-
At this point of my life
Where I can't feel anything
Any emotion whether it's
Jealous or anger or happiness anything.
It's like my mind has become numb nd all the voices around me sounds like echos.
It's like I gave up on everything in my and I'm at my most vulnerable state where anyone can stab me and put me down and I won't say a word because none of this matters to me anymore.
Why do I fight back? Why do I retaliate? Why do I even care? Its like I'm not living. I'm surviving each nd everyday and I'm tired to feel that way.
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रिश्ते अगर हीरे की तरह मजबूत होता है
तो
काँच के तरह नाजुक भी....
गलतफ़हमी, शक की कभी कोई जगह नहीं होनी चाहिए..!-